“गीतिका”
खुलकर नाचो गाओ सइयाँ, मिली खुशाली है
अपने मन की तान लगाओ, खिली दिवाली है
दीपक दीपक प्यार जताना, लौ बुझे न बाती
चाहत का परिवार पुराना, खुली पवाली है॥
कहीं कहीं बरसात हो रही, सकरे आँगन में
हँसकर मिलना जुलना जीवन, कहाँ दलाली है॥
होना नहीं निराश आस से, सुंदर अपना घर
नीम छाँव बरगद के नीचे, जहो जलाली है॥
डाली कुहके कोयल गाती, भौंरें जगह जगह
हर बागों के फूल खिले से, महक निराली है॥
क्या कार्तिक क्या जेठ दुपहरी, कैसी है बरखा
कजरी झूले अपना झूला, ललक खयाली है॥
आया “गौतम” घूम घाम के, तरुवर झाँकी रे
कहाँ सुखद विश्राम मिला, मन नेह लगाली है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी