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हरी-भरी वादियाँ, बर्फीली चोटियाँ, कल-कल करती नदियाँ, मोहक जीव-जन्तुओं की सपनीली दुनिया तथा बेहतरीन औद्योगिक एवं शैक्षणिक परिवेश को समेटे हुए सुन्दर, शांत, हरित, स्वच्छ, सुरक्षित एवं साक्षर देवभूमि उत्तराखंड ने विश्व-पटल पर एक विकासशील पर्यटन प्रदेश की पहचान बनाई है....उत्तराखंड पर समय-समय पर विभिन्न पर्यटन स्थलों की यायावरी के क्रम में इस बार बात बेहद तेजी से उभरते सुन्दर शांत कौसानी कस्बे की...
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भोर में ही कौवों की कांव-कांव, यूं तो सूचक है, किसी मेहमान के आने का | लेकिन बचपन से मन-मष्तिष्क में बसी यह लोकोक्ति, तब चरितार्थ हो गई, जब शैशव सूरज की लालिमय किरणों ने हिमालय की सुन्दर पर्वत श्रेणियों- चौखम्भा, नंदाघूंटी, मृग्थुनी, मैक्टोली, नंदा देवी, नंदाखाट, पंचाचूली और विशेष कर त्रिशूल चोटियों को छुआ.....सामने जो मनमोहक नजारा था, उसका वर्णन अकल्पनीय और सर्वथा अवर्णनीय था | वास्तव में, हर व्यक्ति के लिए यह दृश्य अपनी तरह से व्याख्या करने योग्य था | इस एक दृश्य के सौंदर्य में वह मायाजाल था, जिसके मोहपाश में आप सदियाँ तो क्या युगों-युगों तक मानव बनकर, इस दैवीय भूमि पर आना चाहेंगें | जी हाँ, बात हो रही है देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊँ अंचल के बागेश्वर जिले में अवस्थित, हिमालय में प्रकृति की एक सुन्दर कविता, कौसानी की जहां का अप्रतिम सूर्योदय पूरी दुनिया में सुविख्यात है | भोर का यह मनभावन नजारा इतना मशहूर है कि विश्व के कोने-कोने के पर्यटकों के साथ ही छायाकारों, चित्रकारों एवं रचनाकारों का यहाँ जमावड़ा लगा होता है, इसी दृश्य की सुन्दरता के रह्स्योद्घाटन हेतु | लेकिन यह नजारा प्रकृति का वह अनादि स्वरुप है, जो स्वयं में व्यक्ति की चिंता, विवशता, बेचैनी, असफलता आदि सभी नकारात्मकता अपने में समाहित कर उसकी आत्मा में नीरव शांति भर देता है | इस पल साधारण से साधारण व्यक्ति के अन्दर भी काव्यात्मक क्षमता सहज ही जागृत हो उठती है | शायद यही वजह है कि हम जैसे घुमक्कड़-यायावर पर्यटन लेखकों का तो पूरा कुनबा ही यहाँ उमड़ा होता है | इस पल यहाँ मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानों भगवान शिव के त्रिशूल का साक्षात् दर्शन हो रहा हो | अच्छी बात यह कि होटल के टैरेस पर आरामदायक कुर्सी में बैठ कर एक कप चाय की प्याली के साथ सूर्योदय का यह नज़ारा मेरे मन में नित नए विचारों को जन्म दे रहा था, जो अन्यत्र मुश्किल है | इन विचारों से हजारों, लाखों कहानियों का सृजन हो सकता था | यही तो ताकत है प्रकृति की, जिस पर कृपा हो गई उसकी रचना को अमरत्व मिलने से कोई रोक नहीं सकता | हालांकि मैंने पूर्व में ही कौसानी के सूर्योदय के बारे में सुन रखा था लेकिन सामने देखने का अहसास अद्भुत था | इस पल आधात्मिकता का मुझे सहज ही बोध हो गया था | यहाँ मन के धागे मन से अपने आप जुड़ जायेंगे, ऐसा मेरा मानना है | मेरे सामने बर्फीली चोटियों का विहंगम नज़ारा तथा बैजनाथ एवं गरुड़ घाटियों की हरियाली और वहां के स्थानीय फल माल्टा की सुगंध वातावरण में इक नयी ताजगी भर रही थी | इस दृश्य को अपने कैमरे में कैद कर ढ़ेरों फोटोग्राफर्स बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं | और यह नज़ारा बहुत सारे पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता है | दीगर है कि जाड़े के महीनों में कौसानी में चाँद और सूरज का एक साथ का बेजोड़ दृश्य अविस्मरणीय होता है | वास्तव में, कौसानी के शांत माहौल में आपको आत्मिक शांति का अर्थ सहज ही समझ में आ जाता है | कौसानी के मुख्य चौराहे से व्यू-प्वाइंट तक पैदल पहुँचने में बमुश्किल १५ मिनट लगते हैं | ज्ञातव्य है कि महात्मा गाँधी ने कौसानी के अपने ३ हफ्ते के प्रवास के दौरान यह उद्धरण दिया था कि सुन्दरता की खोज में पता नहीं क्यों लोग यूरोप जाते हैं जबकि कौसानी में ही स्विट्ज़रलैंड विद्यमान है | शांत गाँव, फलों से लदे बगीचे, चीड़ के पंक्तिबद्ध पेड़, चाय बागान, पहाड़ों में सर्पीले घुमाव भरे रास्ते कौसानी को बेहद खूबसूरत स्थल की गरिमा प्रदान करते हैं | उल्लेखनीय है कि कौसानी में पर्वत चोटियाँ दिन भर अपना रंग बदलती रहती हैं | एक और खास बात है कि कविताओं के सुविख्यात रचनाकार सुमित्रानंदन पन्त जी का जन्म भी कौसानी में ही हुआ था, जहां उन्होंने प्रकृति की गोद में रहकर एक से बढ़कर एक प्राकृतिक मौलिक रचनाओं का सृजन किया | वास्तव में, कौसानी का अर्थ ही है जिसका कोई सानी नहीं | यहाँ हैदराबाद से आये शादीशुदा जोड़े के चेहरों पर बिखरी खुशियाँ कौसानी की पर्यटन क्षमता का भान कराने के लिए पर्याप्त थीं |
खास आकर्षण :
- अनासक्ति आश्रम : अनासक्ति या गाँधी आश्रम महात्मा गाँधी को समर्पित स्थल है, जहां सन १९२९ में अपने ३ हफ्ते बापू ने बिताये थे और कौसानी की आबो-हवा, सुन्दरता पर रीझकर इसे स्विटज़रलैंड कहा था | यहाँ के शिखर सोपान से हिमालयी चोटियों का विहंगम नज़ारा लिया जा सकता है | यहाँ गाँधी साहित्य से भरा एक पुस्तकालय भी है, जो हर रविवार को छोड़कर शेष दिन खुला रहता है | यहाँ पर्यटन सीजन में लगभग १००० पर्यटक रोजाना आते हैं | यहाँ स्थित प्रार्थना कक्ष में सुबह-शाम विशेष प्रार्थना भी होती है | वैसे तो यहाँ हर प्रान्त से लोग बड़े पैमाने पर इस स्थल का भ्रमण करने आते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा तादाद पश्चिम बंगाल से आने वाले पर्यटकों की होती है | यहाँ ठहराने की भी अच्छी सुविधा है साथ ही यहाँ का शाकाहार सादा भोजन भी लोगों को अच्छा लगता है | विशेष आकर्षण यहाँ बापू की वंशावली बोर्ड भी है, जिससे बापू परिवार के सदस्यों के बारे में रोचक जानकारी हासिल होती है |
- सुमित्रानंदन पन्त गैलरी : प्रख्यात कवि सुमित्रानंदन पन्त की जन्मस्थली होने के कारण कौसानी में इस गैलरी का निर्माण किया गया | यहाँ तक पहुँचने वाला रास्ता पन्त मार्ग कहलाता है | यहाँ अल्मोड़ा के नेशनल म्यूजियम की एक शाखा संचालित है | यह कौसानी के मुख्य चौराहे के बिल्कुल समीप ही अवस्थित है | यहाँ पन्त जी द्वारा प्रयोग में लाये गए टेबल, कुर्सी तथा हरिवंश रॉय बच्चन, अमिताभ बच्चन के साथ की दुर्लभ तस्वीरों का संग्रह भी है | यह सुबह १०.३० से शाम ४.३० तक खुला रहता है |
अन्य आकर्षण :
कौसानी के जिला पंचायत रेस्ट हाउस से लगभग ९ किलोमीटर की दूरी पर श्री रुद्रधारी महादेव का सिद्ध मंदिर है, जहां एक गुफा में एक प्राकृतिक शिवलिंग विराजमान है | यहाँ के अन्य आकर्षणों में उत्तराखंड चाय बोर्ड द्वारा बने चाय के बागान भी शामिल हैं |
समीपवर्ती अन्य पर्यटन स्थलों से कौसानी की दूरी :
बैजनाथ (२० किमी ), ग्वालदम (४० किमी ), चौकोरी (८५ किमी ), जागेश्वर धाम ज्योतिर्लिंग (८५ किमी), बिनसर (८७ किमी ), पाताल भुवनेश्वर (१३५ किमी ), मुनस्यारी (१९५ किमी ) |
कैसे पहुंचे ?
कौसानी का निकटतम हवाई-अड्डा पंतनगर है, जो यहाँ से लगभग १८० किमी दूर है | जबकि निकटस्थ रेलवे स्टेशन काठगोदाम लगभग १४२ किमी है | कौसानी सड़कों द्वारा अग्रलिखित महत्वपूर्ण शहरों से भली-प्रकार जुड़ा है, मसलन अल्मोड़ा (५१ किमी ), रानीखेत (७९ किमी ), नैनीताल (१२० किमी ), बागेश्वर (३९ किमी ), बद्रीनाथ (२७० किमी ), हरिद्वार (३२५ किमी ), दिल्ली (४१० किमी ) इत्यादि |