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काव्य

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सांसे जब तक है,टकराव होते रहेंगे।रिश्ते जब तक है,टकराव होते रहेंगे।।बोलते रहते हैं पीठ पीछे,बोलते रहने दो।क्या फर्क पड़ता है,लगाव रहने दो।।दिल से दुआ करो,हर किसी की खैर रहे।खुदा हाथ थामे अपना,हर किसी

मनमौजी या मन का मौजी,चले वह अपनी ही डगर।मंजिल का पता न राह का,राह चले वह अनजानी डगर।।मनमौजी या मन का मौजी,न दिन का ठौर न रात का।मस्तमौला सा फिरता रहता,राह का पता न मंजिल का।।मनमौजी या मन का मौजी,न भूख

खुले आसमान में सूरज ने,आभा अपनी बिखराई आज।पेड़ों के झुरमुट से प्रस्फुटित,किरणों ने जमीं छुई आज।।खुले आसमान में पंछियों ने,नभ में अपने पंख पसारे।।उड़ते हुए ये एहसास करते,आजादी का जश्न मना रे।।खुले आसमा

मुश्किलों के सदा हल हो ऐ जिंदगी।थके न फुर्सत के पल दे ऐ जिंदगी।।दुआ है कि सबका सुखद आज दे ऐ जिंदगी।आज सुखद है तो आने वाला कल भी दे ऐ जिंदगी।।इत्तेफाक से सबके रंग देखे हमने ऐ जिंदगी।चेहरे भी बदले हुए द

प्राचीन भारत की कलाकृति,मंदिरों, महलों में नजर आती।कुछ तो खंडहर में तब्दील हुए,अब अवशेषों में नजर आती।।दुनिया राजा महाराजाओं की,प्राचीन भारत के नज़राने थे।अस्त्र शस्त्र और शास्त्रों में गुरु,गुरुकुल म

बिखरे है फूल बागों में,जैसे बागों में बहार है।महक उठा आशना हमारा,जैसे बागों में बहार है।।फूल दिए दिए हमें ऐसे,उनकी खुशबू से महक उठे।बगिया हमारे घर की महकी,उनकी खुशबू से महक उठे।।फूल से खिलते बच्चे हमा

मैं अपने देश का हमेशा,दिल से सम्मान करती हूं।छाया रहे आलोक हमेशा,दिल से अरमान रखती हूं।।शान हमारा है ये तिरंगा,तीन रंग है ये दर्शाता।किरणें बिखेरता केसरिया,सफेद रंग सादगी दर्शाता।।तिरंगे का अपना रंग ह

मनभावन सावन की फुहार,रिमझिम रिमझिम बरसे बूंदे।पपीहा भी गाए राग मल्हार,छाए बादल आह्लादित बूंदे।।मनभावन सावन की फुहार,मंद मंद चले पवन की बयार।रिमझिम रिमझिम बरसे मेघा,घुमड़ घुमड़ कर छाए बादर।।मनभावन

सतरंगी आसमान बिखर गया,अपने में समाहित सातों रंग।सतरंगी आसमान में उड़ने को,बेताब पंछी उन्मुक्त गगन को।।बिखरे रंग सतरंगी आसमान में,उड़ कर अपनी छटा बिखेरते।उड़ते बादल आह्लादित होते,पुलकित हो फिर मन मुस्क

विचलित मन काहे को तू,क्यों इतना अधीर हुआ रे।मन की शांति भंग हुई,काहे मन तू अधीर हुआ रे।।सोच में शामिल है तू,है शामिल तू विचारों में।दूर नहीं एक पल भी,बेचैन हमेशा विचारों में।।उत्कृष्टता की झलक दिखा,वि

मौन जितना गहरा होगा,स्पष्टता परमात्मा की उतनी।सुनना अगर आवाज़ चाहते,सागर में मोती हो जितनी।।मौन रहो और ध्यान करो,परमात्मा की आवाज़ सुनो।ध्यान करो एकाग्र रहो,अंतरात्मा की आवाज सुनो।।मौन रहकर हृदय से जु

दीप तले अंधेरा होता है,जब दीप प्रज्वलित होता है।चहुंओर प्रकाश फैला कर,खुद ही जलता रहता है।।दीप तले अंधेरा लेकिन,चहुंओर रौशनी भर देता है।दीप तले पतंगा आए तो,जल कर वह मर जाता है।।दीप तले अंधेरा है किन्त

जिज्ञासा एक आशा है,जागरूकता जो जगाती।कुछ जानने को उत्सुक,मन में आस वह जगाती।।उत्सुक और बेचैन मन,पिपासा को वह जगाता।जिज्ञासा है एक आशा,बेचैन मन को शांत करता।।जब तक जान न लेता,तब तक शांत न होता।जिज्ञासा

समुद्र की लहरें किनारे पे,ये आती जाती रहती हैं।ऊंचे वेग से उठती गिरती,उद्विग्नता मन में जगाती हैं।।समुद की लहरें उफनती है,संग समुद्री जीव आते हैं।किनारे पर ठहर कर कैसे,संसार की माया देखते हैं।।समुद्र

लोग कहते हैं कि खुश क्यों,हमें ईर्ष्या ही नहीं होती।दुख अपना किसी से हमें,बताने की जरूरत नहीं होती।।खुश रहना भी कला है,आदत में शुमार होती है।बात जुबां पे नहीं और,दिल में बसी रहती है।।खुश रहा करो कि ऐस

सुमिरन करो प्रभु को,लगे नश्वर जग संसार।माया मोह के छूटे बंधन,लगे नश्वर जग संसार।।जिंदगी है दो पल की,सिर्फ नाम प्रभु का लीजै।पार लगेगी नैया तुम्हरी,इक बार सुमिरन कर लीजै।।आया है रे तू मनवा,देखन तू

ज्ञानी व्यक्ति के ज्ञान से,अज्ञानी व्यक्ति अर्जित करै।अज्ञानी व्यक्ति के अज्ञान को,कोऊ व्यक्ति अर्जित न करै।।जीवन के अन्धकार दूर होत,ज्ञानी व्यक्ति से ज्ञानार्जन होत।अज्ञानी व्यक्ति भी घबरात ,जब उहे ज

नारी स्वयं शक्ति होती है ,होते हैं इसके विभिन्न रूप।जरूरत खुद को जानने की,होते क्या है इसके ये रूप।।नारी दुर्गा नारी ही शक्ति,नारी शक्ति अपरम्पार है।खुद को जाने और पहचाने,जीवन मंत्र का ये सार है।।नारी

कर्म प्रधान है राज्य हमारा,राजा - रंक जीवन के पर्याय।धर्म पर न आए संकट कभी,जीवन का है यही उपाय।।संपत्ति, उपलब्धि, सफलता,यही तो है मूलभूत कारण।कर्म, धर्म और सफलता,जीवन के ये है उदाहरण।।अहंकार से नहीं ब

पत्थर की तरह से ही,जैसे हो मजबूत इरादे।कभी न तोड़ना इनको,करो ये हमसे वादे।।पत्थर को तोड़ना भी,नहीं होता है आसान।वार गर बार बार करोगे,तोड़ना होता है आसान।।पत्थर में भी होता,है ये भगवान हमारा।मानो

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