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काव्य

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अनुभव नहीं कोई कल्पना,कर्म से ही यह आता है।प्रयास विफल नहीं होता,अनुभव तो जरूर मिलता है।।कर्म में हो समाहित जब,अनुभव का ज्ञान मिलता।प्रयास से अनुभव हासिल,स्वीकार ये खुद को होता।।कर्म भूमि मनुष्य के हा

व्यर्थ दो चीजें,नहीं होनी चाहिए,अन्न के कण,और आनंद के क्षण,मुस्कराते रहो,कभी अपने लिए,कभी अपनों के लिए।फूलों में भी,पाए जाते हैं कीड़े,पत्थरों में भी,पाए जाते हैं हीरे,मुस्कराते रहो,कभी अपने लिए,कभी अ

अच्छी भूमिका और अच्छे लक्ष्य।यही तो हमारे जीवन का उद्देश्य।।मुस्कराने की वजह जरूरी नहीं।बात बात पर मुस्कुराना ठीक नहीं।।मुलाकात की भूमिका भले ही न हो।हमसे जरूरी नहीं कि मुलाकात ही हो।।दिल में वही वही

दुनिया की भीड़ में अकेला,राही अपनी मंजिल तलाशता।भटक रहा है इधर - उधर,राह अपनी हर पल बदलता।।दुनिया की भीड़ में अकेला,खो न जाए कहीं पर।साथ ढूंढता है वो किसी का,साथ मिल जाए कहीं पर।।दुनिया की भीड़ में अक

फूलों की बहार छाई,जुड़ी मिट्टी से होती है।शाखा कितनी ऊंची होजड़े मिट्टी में होती है।।फूलों का खिलना भी,मन का हो मुस्काना।फूल खिलते हैं ऐसे,देते चमन को नजराना।।इंसा में संस्कार पनपते,जब जुड़े हो वो मिट

मंजिले तय करते हैं हम,रास्तों से शुरुआत होती है।डगर टेड़ा ही सही तो क्या,रास्तों से शुरुआत होती है।।रास्ता पथरीला ही सही,बढ़ते चलो उस डगर पे।रुकावटें हटाते चलो तुम,बढ़ते चलो उस डगर पे।।मंजिल का पता नह

मानवता के लिए योग करें,स्वस्थ जीवन को हम जिए।शक्ति और स्फूर्ति जगाए,तन मन को स्वस्थ बनाए।।मानवता के लिए योग करें,योग दिवस को यादगार बनाए।समय अपना कुछ देकर ऐसे,नियमित योग से ताज़गी जगाए।।मानवता के लिए

माना हमने की दीपक,तले ही अंधियारा होता है।फिर भी ये देता प्रकाश,चहुंओर उजियारा करता है।।हर रात गुजरती है ,अंधेरा छा जाता है।पौ फटते ही सुबह को,फिर उजियारा होता है।।लोग डरते हैं जाने क्यों,मुसीबत को दे

दुनिया एक है माना,खींच रखी क्षैतिज रेखा।मानक तय करना इसका,दृश्य को परिपेक्ष्य में देखा।।दुनिया एक है माना,नहीं होती ये परिकल्पना।इंसा ही इंसा का दुश्मन,नहीं स्नेह की कल्पना।।दुनिया एक है माना,प्रयास क

अजीब होते लोग दुनिया के,दुजों को साबित करते गलत।रंग बदलती इस दुनिया में,खुद ही हो जाते गलत।।अजीब होते लोग अपेक्षा क्यों,रास्ता बदलना ही मुमकिन नहीं।शक्ति लगाते खुद सही होने में,क्यों खुद बदलना मुमकिन

खट्टी मीठी यादें जुड़ी,होती है जीवन में कुछ।रिश्तों की डोर में बंधे,पिरोए होते हैं ये कुछ।।खट्टी मीठी यादें जुड़ी,यादें ताज़ा हो जाती है।बातें याद आती है कुछ,खुशबू अपनी बिखराती है।।खट्टी मीठी यादें जु

जगमगाते सितारे टिमटिमाते,कितने देखो चांदनी रात में।चांद भी अपनी बिखेर रहा,रौशनी कितनी चांदनी रात में।।जगमगाते सितारे का मंडल,आभा बिखेर रहा है अपनी।सप्त ऋषियों का समूह भी,एक जुटता दिखा रहा अपनी।।जगमगात

अंतर्मन की पुकार सुन,मन को व्यक्त करना।मन जब आह्लादित होता,सब कुछ दुरुस्त लगना।।सब के सामने मुस्कुराना,मन में अंतर्द्वद्व का चलना।आसान क्या लगता मुस्काना,मन में तूफान का चलना।।अंतर्मन में निहित स्वार्

अपने पे विश्वास करना,भी होती एक सफलता है।दूसरे से उम्मीद न रखना,भी होती एक सफलता है।।सफलता के हैं तीन नियम,है नियमों का पालन करना।खुद से खुद का वादा करना,है नियमों का पालन करना।।मजबूत इरादा रखना है,पा

कागज़ का टुकड़ा जिस पर,कलम,स्याही, दवात का पहरा।शब्दों का प्रयोग जहां तक,मनस्थिति आंकलन का पहरा।।कागज़ का टुकड़ा जिस पर,लेखनी से विचार सजाते।भावों और विचारों का मंथन,प्रयासों से अपना लेखन सजाते।।कागज़

परेशानियां जिंदगी में आती हैं,आत्म बल को संजोने के लिए।कल का सुकून पाने की चाहत,न आज का सुकून खोने के लिए।।अंदरुनी शक्ति की पहचान,करती है ये परेशानियां।न खोना तुम कभी भी,पहचान कराती परेशानियां।।जरा गौ

आसमान के पंछी उड़ते,फैला कर पंख पसार।ऊंची ऊंची उड़ाने भरते,अपने पंखों को पसार।।ख्वाहिशें करते रहते पंछी,चमकुं सूरज बन आसमां में।सूरज बन के किरणें फैलाऊं,धरती को ताकुं आसमां में।।ख्वाहिश पंछियों की होत

पधारो हे नंद लाल, जगमगा रही धरा । पालने में खेलता वो, मुस्कुरा रही देख यशोदा ।। शोभे मयूर पंख सिर तेरे, हाथ लिए बंसी । नटखट गोपाल लीला, गोपियाँ थाम न सकी हँसी ।। लीला है अपरंपार तेरा, जीवन का

स्त्री के लिए घर संसार,उसका अपना परिवार होता है।प्यारे से अनमोल बच्चे,संग हमसफ़र का साथ होता है।।घर संसार में रिश्ते नाते,उनका भी बंधन होता है।रिश्तों की डोर में बंधे,उनका जग संसार होता है।।घर संसार म

जीवन की हूं उस राह पर जहांछोड़ना आसान नहीं और पाना तुम्हें नामुमकिन सासुनो ... गर मैं कहूंके साथ ये बस यहीं तक था प्रियअब फिर मिलेंगे हम कभीजहां है नूर तारों का बिखरता प्रियसुनो गर मैं कहूं कीसाथ

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