“कता”
चाहत तो होती है पा लूँ तुझे।
उड़ आऊँ कैसे मैं छा लूँ तुझे।
रहते बालम जिया बन गगन क्यों-
सुन सकोगे सजना गा लूँ तुझे॥
खिली धवल चाँदनी हँसने लगे।
टपकी बूँद बदरी डँसने लगे।
भिगाती हवा हिया काँटा चुभे-
निरे आवारे हो भसने लगे॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी