हचर हचर कर चल रही बस में खड़े हैं. सीटों पर कब्जा जमाए बैठी सवारियों को मन ही मन कोस रहे हैं. तभी बगल वाली सीट पर ऊंघ रहे लौंडे का मोबाइल बजता है:
“के कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है…….”
जब ये कविता अपने रचयिता कुमार विश्वास समेत मार्केट में नई आई थी, तो इसमें थोड़ा बहुत मजा आता था. लेकिन फिर ये ‘कोई दीवाना और पागल’ इतने घिस गए कि मन उचट गया. कुमार विश्वास ज्यादा नया माल लाए नहीं. और अपनी पंक्तियों के बीच में जो जोक्स डालते थे, वे भी घिस-घिसकर सुडौल हो गए. ये जोक्स उन्होंने इतनी जगह, इतने कवि सम्मेलनों में और इतनी कविताओं में इस्तेमाल किए कि अब मुंहजुबानी याद हो गए हैं और खीझ पैदा करने लगे हैं. ये हैं वे ‘एक्सपायर्ड’ जोक्स जो कुमार विश्वास की पहचान बन गए हैं:
1. रात 12-1 बजे फोन करके मेरे दाम्पत्य जीवन में खलल डाला: कुमार विश्वास की आदत है कि उनका जोक पुराना होता है, पर उसके किरदार नए होते हैं. हर बार जोक के लिए नया शिकार चुनते हैं. वो साथी कवि भी हो सकता है और आयोजक भी. फिर कहते हैं कि अगले ने इस प्रोग्राम के लिए उन्हें रात-बिरात फून किया और उनके दांपत्य जीवन को खलल में डाला. दांपत्य जीवन का मतलब ‘सेक्स लाइफ’ से होगा, ऐसा समझा जाता है. आप इसी बात पर हंस लें, ऐसा अपेक्षित है.
2. सरकारी काम में बाधा न डालो: वही बकवास कि एक आदमी गड्ढा खोद रहा है, दूसरा उसमें मिट्टी डाल रहा है और पूछने पर कहता है सरकारी काम में रुकावट न डालो. भाई ये जोक बार-बार चिपका के आप भी वही सरकारी आदमी वाला काम कर रहे हो जिसने फाइल अटका रखी है. ब्रिंग समथिंग न्यू डूड.
3. तुम यहां थे और मैं तुमको झुमरी तलैया में ढूंढ़ रहा था: बस करें प्लीज. तुम यहां थे, तुम वहां थे, बोल-बोलकर मूड की बीड़ी जला दी है. अगर आप यहां की बजाय कहीं और होते तो ठीक था कसम से. अरे किसी उत्साहित दर्शक ने त्वरित प्रतिक्रिया में ‘वाह’ क्या कर दिया, आप उसे पागलखाने का प्राणी बताने लगे. ई तो ‘इंसल्ट ह्यूमर’ हुआ बबुआ. फिर ‘बिग बॉस’ से इतनी अदावत क्यों है?
4. राणा सांगा की तलवार: मैं बताता हूं मेरी बात मानोगे? ये चुटकुला राणा सांगा की तलवार से भी पुराना हो चुका है. जब इसे घोंपते हो, तो ये उस तलवार और उस तलवार के सेप्टिक से भी पहले जान ले लेता है. जंग तलवार में लगा है या…..
5. इतनी महिलाएं एक साथ चुप नहीं देखी: पहले तो भाई साहब बड़ी अदा से मातृशक्ति को प्रणाम करते हैं फिर शरारती मुस्कान के साथ कहते हैं कि इतनी महिलाएं एक साथ बैठी और चुप बैठी नहीं देखी. ये बताना चाहते हैं कि मेरी कविता को जब ये सीरियसली ले रही हैं, तो आप क्यों नहीं ले रहे. है ना?
6. पापी पाकिस्तान की जीभ: राख लगाकर खींचो चाहे चिमटे से पकड़ कर, लेकिन खींच लो जुबान बस. चट गए हैं इस घटिया पंचलाइन से.
7. बांछें कहां होती हैं: जिन्होंने ‘राग दरबारी’ पढ़ी है, वे जानते हैं कि यह सवाल मौलिक रूप से श्रीलाल शुक्ल 1968 में ही पूछ गए हैं. अब तक तो वै ज्ञान िकों ने पता लगा भी लिया होगा कि बांछें कहां होती हैं. चोरी का नहीं कहूंगा. पर ये जो ‘प्रेरित’ चुटकुला है आपका, इसे अलादीन के चिराग की तरह घिसना बंद कर दें श्रीमन्. कृपा होगी.
8. गंदी राजनीति करोड़ों की कविता: खैर अब ये लाइन सुनानी बंद कर दी है कि दो कौड़ी की राजनीति पर करोड़ों की कविता क्यों बरबाद की जाए. पता तो होगा ही क्यों. लेकिन इतना और बता दें कि अब इस जोक से होंठों पर सेंटीमीटर भर मुस्कान भी नहीं आती है.
9. तुम हो अभी तक: ये वाला जोक सबसे ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेजों के कवि सम्मेलनों में आयात होता है. हर कॉलेज में रट्टू तोते की तरह जुमला बोलते हैं कि तुम हो अभी तक, मैंने सोचा पास होकर निकल गए होगे. मैं होता तो कहता भाईसाब पास तो कब का हो गया, लेकिन कॉलेज में एक बार आपकी कविता सुन ली थी, तब से आत्मा इधर ही भटक रही है.
10. आपकी घनघोर तालियों का शुक्रिया: मंच पर आते ही जहां बाकी कवि तालियों की भीख मांगने लगते हैं, तो कुमार साहब के अंदर का इंजीनियर जाग उठता है. आते ही मजाक उड़ा देते हैं कि आपकी घनघोर तालियों का शुक्रिया. ओवरस्मार्ट गाय. अब यार पानीदार आदमी होगा तो दनादन तालियां पीटता रहेगा ना.