"कुंडलिया"
पहली इस बरसात ने, मन को दिया सकून।
तन का पारा गिर उठा, हर्षित धरा प्रसून।।
हर्षित धरा प्रसून, जनून विहग का देखो।
नापे नभ विस्तार, कड़कती बिजली लेखो।।
गौतम बाँधे मेंड़, भेंड़ की चाल न बदली।
री आषाढी बीज, सावनी तिजिया पहली।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी