"कुंडलिया"
बड़का पियरा शरहरा, नहीं रहे वो आम।
राही छक कर खा गए, बिना मोल बिनु दाम।।
बिना मोल बिनु दाम, भदोही और सेनुरिया।
लहसुनिया सा स्वाद, न पाया फिरा बजरिया।।
'गौतम' तबके बाग, खिलाते देशी तड़का।
अबके छोटे पेड़, फले गुठली बिनु बड़का।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी