सृष्टि कर्ता ने मानव को अपनी रचना का सर्वउत्कृष्ट प्राणी बताया, उसका मुख्य कारण है की, धरती पर जितने भी प्राणी है वह भी इसी धरती पर ही है, किन्तु इस सृष्टि रचने वाले को अन्य कोई प्राणी नहीं जान सकता सिवाए मनुष्य के | यही कारण है सिर्फ और सिर्फ मनुष्य को सभी प्राणियों में सबसे उत्कृष्ट प्राणी कहा गया बताया गया |
अब दुर्भाग्य यह है की यह मनुष्य उत्कृष्ट हो कर भी अपना परिचय उन उतकृष्ट प्राणियों में अपने को शुमार नहीं कर पा रहे हैं अथवा नहीं करा पा रहे हैं, यही अचाम्भे की बात है |
चलें आज इसका कारण खोजते हैं, की आखिर हमारा जो नाम उत्कृष्ट पड़ा तो हमारा गुण भी तो उत्कृष्ट होना चाहिए ? यथा नाम तथा गुण बताते हैं लोग,आखिर सत्यता क्या है की यह मानव अपना गुण को कैसा छोड़ दिया ? यह अपने आप में ही बहुत बड़ा प्रश्न है |
इसका मूल कारण है की जिस परमात्मा ने मानव को उत्कृष्ट बनाया उसे ज्ञान दिया विवेक दिया सुन्दर शारीर दिया सब कुछ मनुष्य के पास उन्हीं परमात्मा का ही दिया हुवा है, किन्तु यह मानव दुनिया में आकर अथवा इस धरती पर आकर उन्हीं परमात्मा को भूल गया,याफिर उसे ही अस्वीकार किया, मानने से मना किया किसी ने, और किसी ने कहा मरने से पहले देख लेंगे कर लेंगे आदि | अर्थात जिस मानव कहलाने वाले को परमात्मा से जुड़ना था वह मानव उसी से ही अपना दुरी बना लिया |
फिर घर परिवार में ऐसा फँसा की यह समझने लगे मेरा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता जो कुछ करना हो करो, यही समझकर जो काम मनुष्य कहलाने वाले का नहीं है उसे ही अंजाम देने लगे | आज सम्पूर्ण विश्व में मानव कहलाने वाले की यही दशा हैं जहाँ कहीं भी देखा जा सकता है | जितना भी अन्याय अनाचार, अत्याचार, दुराचार, व्यभिचार, दुषकर्म,चोरी,जारी,लुट खसोट यह सब मनुष्यों द्वारा हो रहा है, जिसे उत्कृष्ट कहा गया | मनुष्यों से अलग जितने भी जीव जन्तु है उन किसी भी प्राणी से यह सब काम नहीं हो रहा है जो मानव कर रहा है|
मानवों के इन सभी कामों के करने से मानवों के ही जवाब देहि है, कारण सृष्टि कर्ता ने मानव को कर्म करने में स्वतंत्र छोड़ा है, किन्तु फल भोगने में मानव प्रतंत्र है,फल दाता का नाम ही है सृष्टि के रचने वाला परमात्मा | जिसने मानव मात्र को उपदेश दिया है कर्म करना तुम मानव कहलाने वालों के इख़्तियार में है, पर फलदाता मैं हूँ, तुम मानव कहलाने वालों फल अपने आप नहीं ले सकते फल तो मैं ही दूंगा तुम्हारे कर्मानुसार ही दूंगा ना किसी को ज्यादा और ना ही किसी को कम | कारण तुम्हारे कर्म के जो फल हैं उसे तुम भोगना नहीं चाहते और सजा मिले तो कम से कम मिले यही तुम्हारी इच्छा है, किन्तु बुरा कर्म करते समय मैंने तुमें भरसक रोकने का प्रयास किया था | तुम्हारे दिल में भय पैदा किया, तुम नहीं मानें, शंका पैदा की, फिर भी नहीं मानें, फिर मैंने लज्जा पैदा की,की आखिर मत करो इस काम को फिर भी नहीं मानें | { अवश्यं मेव भोक्तव्यं कृतं करमं शुभा शुभं } अवश्य ही भोगना है किये कर्मों का फल शुभ और अशुभ =जैसा करोगे ठीक वैसा ही फल मिलेगा |
जब मेरे रोकने पर भी तुम ना रुके, तो सजा अब मैं दूंगा, पर इतना जरुर याद रखना की सजा तुम्हारे कर्मानुसार ही मिलेगा उस से ज्यादा नहीं, और कम भी नहीं दूंगा | कारण मेरा नाम न्यायकारी है, न्याय करना मेरा स्वाभाविक गुण है, मैं किसी को क्षमा नहीं करता और ना तो किसी को ज्यादा देता यह औरों के साथ अन्याय है |
पर इन मान्यताओं से कुरान और बाइबिल सहमत नहीं है, उनलोगों की मान्यता है किये गये पाप कर्मों से छुटकारा मिल जायेगा, ईसाई बन जाने पर ईश्वर पुत्र ईसा मसीह ने तुम्हारे किये पापों को अपने ऊपर लिया है, तुम्हारे किये पापों का बोझ तुम पर नहीं ईश्वर पुत्र ईसा मसीह पर ही है | इधर इस्लाम वाले कह रहे हैं तुम मुसलमान बनो, इसलाम वालों की मान्यता है की मुस्लमान बनजाने पर अल्लाह सभी गुनाहों को माफ़ करदेंगे |
मानव कहला कर भी इस सत्य को जानने व समझने की कोशिश नहीं की और यह उनलोगों से किसीने पूछा तक नहीं की पाप हमारा किये कर्मों का है, उसे भोगे बिना हमें छुटकारा कैसे मिल जायेंगे भला ? क्या मैं खाऊ और पेट किसीका भरे यह क्यों और कैसा संभव है ?
अब मानव कहलाने वाले इसी इसलाम और ईसाइयत के, दिए गये लोभ और लालच से ही कोई मुसलमान बनते हैं, और कोई ईसाई |
{देखें कुरान में अल्लाह ने क्या कहा }
قَاتِلُوهُمْ يُعَذِّبْهُمُ اللَّهُ بِأَيْدِيكُمْ وَيُخْزِهِمْ وَيَنصُرْكُمْ عَلَيْهِمْ وَيَشْفِ صُدُورَ قَوْمٍ مُّؤْمِنِينَ [٩:١٤]
इनसे (बेख़ौफ (ख़तर) लड़ो ख़ुदा तुम्हारे हाथों उनकी सज़ा करेगा और उन्हें रूसवा करेगा और तुम्हें उन पर फतेह अता करेगा और ईमानदार लोगों के कलेजे ठन्डे करेगा |
कुरान भरा पड़ा है ऐसी उपदेशों से जहाँ अल्लाह ने मुसलमानों को गैर मुस्लिमों को क़त्ल करने का हुक्म दिया और यह भी बताया काफिरों को मारने वाले मुसलमानों का कलेजा ठण्डा करेगा |
فَقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفْسَكَ ۚ وَحَرِّضِ الْمُؤْمِنِينَ ۖ عَسَى اللَّهُ أَن يَكُفَّ بَأْسَ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ وَاللَّهُ أَشَدُّ بَأْسًا وَأَشَدُّ تَنكِيلًا [٤:٨٤]
पस (ऐ रसूल) तुम ख़ुदा की राह में जिहाद करो और तुम अपनी ज़ात के सिवा किसी और के ज़िम्मेदार नहीं हो और ईमानदारों को (जेहाद की) तरग़ीब दो और अनक़रीब ख़ुदा काफ़िरों की हैबत रोक देगा और ख़ुदा की हैबत सबसे ज्यादा है और उसकी सज़ा बहुत सख्त है |
इन आयातों को सामने रख कर इसलामी आतंकवादी अमरनाथ यात्रियों को हो तथा धरती पर जहाँ कहीं भी इसलाम के मानने वाले आतंक मचा रहे हैं उसके प्रेरणा श्रोत कुरान ही है |
मैंने दो प्रमाण दिए हैं अनेक प्रमाण कुरान में ही मौजूद हैं |
#विट्ठलव्यास.
मूल लेख क : मनोज कुमार सिंह