मनखे मनखे एक समान
करीया गोरा के का भेद
छोकरा अउ डोकरा के का भेद
सबो ला दे हे मति समान
मनखे मनखे एक समान।
जात पात तो अलग हे
त एमे घबराए के का बात
सबे के माटी तो एक हे
जो पोषण करके बचाथे जान
मनखे मनखे एक समान।
झगड़ा लड़ाई में बित जही
हो जही सुबा से शाम
नई चलबे त लद्दी कस हो जबे
भारीभरकम तोर ले ही प्रराण
मनखे मनखे एक समान।
अपन भारा ला खुद उठा
पेट के आगी ला बुझा
करम करते आगे बढ़ बाबू
तभे मिलही तोला ग्यान
मनखे मनखे एक समान।
देख का तोला दे हे
मिले हे फोकट में
एक सांस के कीमत जान
ठाकुर जी के एहसान तो मान
मनखे मनखे एक समान।
(छत्तीसगढ़ी भाषा में रचित यह कविता एकता व जन कल्याण की प्रेरणा देता है। हमारी जाति धर्म अलग-अलग भले हो पर हम सब मनुष्य है और इस पृथ्वी के सभी मानव समान है।)
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