वो दिन याद है जानी
जब सरहद पर चले जाते
हम अपने घर से बहुत दूर होते
गर्म मरुस्थल में तो कभी
ठंडी बर्फ में रहना होता
तूफानी हवा,तेज धूप सहना होता।
लंबी यात्रा में माँ के हाथ का बना
पराटा और आलू भुन्जिया
का स्वाद कितना स्वादिष्ट
और आनन्ददायक लगता।
मै सोचता था ये लकीरे
किसलिए खींचे गए हैं
स्वयं धरती माँ ने तो कोई
बंटवारा नही किया
पर उनके औलादो ने
जमीन को कई हिस्सो में
बाँट दिया ये क्या कम था
पहले से काले गोरे बटे है ।
क्या पृथ्वी को उसने बनाया
क्या जीव जंतु मनुष्य की देन
किसने उसको हक दिया
नौजवान मर मिटते
जिसे नही जानते पहचानते
उनका रक्त बहाते
कितनी राशि खर्च हो जाती
तोप बन्दूक मिसाइल में
अभी भी नही हो पाया
आदम से मनुष्य
सुन रहे हो जानी।
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save tree🌲save earth🌏&save life💖