हम भारत के वासी है,हिन्दी रच वासी है ।
राम कृष्ण की जन्मभूमि ब्रज के वासी है ।।
कितने तपोभूमि मिलते जैसे मथुरा काशी है ।
हम सब है इन्सान पर अलग अलग राशि है।।
मधुर रचना करते हिन्दी में वो भी प्रवासी है ।
छन्द रस अलंकार व्याकरण इनका दासी है।।
स्वर व्यंजन की हार सजाने कलम की स्याही प्यासी है।
थर थर काँपे दुश्मन ऐसा मर्दानी रानी झांसी है।
हम भारत के वासी है, हिन्दी रच वासी है।
मंदिर मस्जिद और गुरुद्वारा सुन्दर नक्काशी है।
खुदे हुए लेख यहाँ वर्णन करते मृदुभाषी है ।।
बर्फ से ढकी वादियां झील किनारे खलासी है ।
हरे भरे खेत खलिहान किसान करते ब्यासी है।।
हम भारत के वासी है, हिन्दी रच वासी है।
Save tree 🌲save earth 🌏&save life ❤