जब इजराइल के राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन इंडिया आए हुए थे. तब भारत और इजरायल ने टेररिज्म के खिलाफ लड़ाई और डिफेंस समझौतों में सहयोग बढ़ाने की बात कही थी. कहा था कि इससे वर्ल्ड लेवल पर शांति, स्टेबिलिटी और लोकतंत्र की आवाज को मजबूती मिलेगी. आतंकवाद पैदा करने और फैलाने के लिए पाकिस्तान को सुनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत और इजरायल इस बात पर सहमत हैं कि इंटरनेशनल कम्युनिटी को विल पॉवर के साथ टेरर नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई करने की जरूरत है.
रिवलिन से मोदी ने कहा था, “हम मानते हैं कि टेररिज्म एक इंटरनेशनल प्रॉब्लम है. और टेररिज्म कोई सीमा को नहीं मानता. दूसरे तरह के क्राइम से भी ये लिंक्ड होता है. ये बहुत ही दुख की बात है कि इन्हें पैदा करने और फैलाने वाले देशों में से एक भारत के पड़ोस में है. आतंक को किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता. आतंक के खतरे से अपने लोगों की रक्षा के लिए भारत और इजरायल साथ खड़े हैं. इजरायल और भारत को आतंक का खतरा है क्योंकि हम आजादी की वैल्यू को मानते हैं. आतंक आतंक है, आतंक आतंक है और आतंक आतंक है.” तीन बार कहा.
रिवलिन ने प्रधानमंत्री मोदी को इजरायल आने के लिए इनविटेशन भी दिया. उन्होंने कहा था, “आपका जेरुसलम में स्वागत करना हमारा सौभाग्य होगा”.
भारत और इजराइल के संबंध वक्त के साथ बहुत बदले हैं. अच्छे हुए हैं. आइए पढ़ते हैं इसके बारे में कि कैसे चीजें बदली हैं:
1.नरसिंह राव का दौर
पिछले 25 साल में दूसरी बार इजराइल का कोई राष्ट्रपति भारत आया है. इंडिया-इजराइल फ्रेंडशिप की शुरुआत आज से 25 साल पहले नरसिंह राव के कार्यकाल में हुई थी. नरसिंह राव ने हिम्मत दिखाई थी और इजराइल के साथ डिप्लोमेटिक रिश्तेकायम किए गए थे. इस से पहले इजराइल के पॉलिसी मेकर्स भारत का दौरा कर चुके थे. लेकिन भारत हमेशा दो कारणों से झिझकता रहा था. एक तो फिलीस्तीनियों के हक की लड़ाई जिसका भारत ने हमेशा ही डटकर समर्थन किया है. और दूसरा भारत के कुछ मुसलमानों की इजराइल विरोधी भावना.
इंडिया आने वाले पहले इजराइली प्रेसिडेंट ‘एजर वेजमेन’ थे. जो कि नरसिंह राव के कार्यकाल के दौरान 1997 में दिल्ली आए थे. उससे पहले इजराइल का कोई भी राष्ट्राध्यक्ष भारत दौरे पर नहीं आया था. वेजमेन ने बराक-1 को खरीदने के लिए दोनों देशों के बीच हथियार बेचने से संबंधित पहला समझौता किया था.
2.अटल बिहारी वाजपेयी का दौर
अटल बिहारी वाजपेयी का दौर भी इंडिया-इजराइल रिश्तोंके लिए बहुत खास रहा. नरसिंह राव ने जो दोनों देशों के बीच संबंधों को एक स्टार्ट दिया था. उसे आगे बढ़ाने का काम अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था. 2003 में इजराइल के प्राइम मिनिस्टर एरियल शेरोन इंडिया आए थे. कई समझौते हुए. उन्हीं समझौतों का परिणाम है कि सिक्यूरिटी, डिफेंस, एग्रीकल्चर और बिजनेस के क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत हुए हैं. उसी वक्त इंटरनेशनल मीडिया में आया था कि भारतीय ख़ुफिया एजेंसी रॉ के इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद से सीक्रेट संबंध हैं. अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में, यानी 2000 में भारत का कोई विदेश मंत्री पहली बार इजराइल गया. जसवंत सिंह. वाजपेयी सरकार के जाने के बाद यह सिलसिला जारी रहा. मनमोहन सिंह की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार में शरद पवार, कपिल सिब्बल और कमलनाथ भी वहां गए. पूर्व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा का भी दौरा काफी चर्चा में रहा.
इसी का नतीजा है कि 2009 में दोनों देशों के बीच 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का डिफेंस बिजनेस हुआ. दोनों के बीच सैन्य, राजनीति क संबंध, जॉइंट आर्मी ऑपरेशंस और यहां तक कि स्पेस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्रों के संबंध तक हैं. खास बात ये है कि भारत इजराइल का सबसे बड़ा डिफेंस मार्केट है, जो पूरे इजराइली सेल का लगभग 50 प्रतिशत है. इसके अलावा इंडिया-इजराइल का दूसरा बड़ा एशियाई इकॉनमिकल पार्टनर भी है. 2010 में आर्मी बिक्री को छोड़कर आपसी व्यापार 4.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर था. अगस्त 2012 में भारत और इजराइल ने 50 मिलियन डॉलर के एकेडमिक रिसर्च समझौते भी किए. फिलहाल दोनों देश का फोकस इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी और एग्रीकल्चर जैसे क्षेत्रों पर है.
3.नरेंद्र मोदी का दौर
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले भी गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर इजराइल जा चुके हैं. उनके प्रधानमंत्री बनते ही इजराइल-इंडिया के संबंधों के बीच नया चैप्टर शुरू हुआ. और दोनों देशों के बीच डिप्लोमेटिक एक्टिविटीज को बढ़ावा मिला. इसी दौर के अक्टूबर 2015 में भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इजरायल की यात्रा की थी. मोदी और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू के बीच केमिस्ट्री भी काफी अच्छी हो गई है. सितंबर 2015 में यूनाइटेड नेशंस की बैठक के बाद इन दोनों के बीच हाल ही में पेरिस पर्यावरण सम्मेलन में भी मुलाकात हुई थी. दोनों ने एक दूसरे को फिर से अपने-अपने देश की यात्रा करने के लिए बुलाया था.
इजरायल ने हाल में पश्चिमी देशों के बजाय पूर्व के बड़े देश मसलन चीन और भारत के साथ अपने रिश्तों पर ध्यान देना शुरू किया है. इंडिया-इजराइल के बीच राजनीतिक रिश्ते बने हुए दो दशक से ज्यादा हो गए हैं. इसके बावजूद अभी तक किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इजरायल की यात्रा नहीं की है.
इजरायल भारत को हथियार इम्पोर्ट करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है. फिर भी किसी भारतीय रक्षा मंत्री ने वहां का दौरा नहीं किया है. मोदी सरकार जिस आक्रामक तरीके से रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया कार्यक्रम को बढ़ावा दे रही है, इजरायल उसमें शामिल होने की इच्छा जता चुका है.
भारत की नजर इजरायल के सुरक्षा उपकरणों पर है. इसमें ड्रोन टेक्नोलॉजी के अलावा जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल टेक्नोलॉजी में भारत का खास इंटरेस्ट है. दोनों देश एग्रीकल्चर के क्षेत्र में मौजूदा संबंधों को और आगे ले जाने को लेकर भी बातचीत कर रहे हैं. मोदी के इजराइल यात्रा के दौरान डिफेन्स और एग्रीकल्चर पर इम्पॉर्टेन्ट समझौते होंगे.
इंडिया-इजराइल रिलेशंस में अमेरिका भी एक फैक्टर है. अमेरिका का पॉवरफुल यहूदी समुदाय भी चाहता है कि इंडिया-इजराइल रिलेशन मजबूत हों. और वे ये भी चाहते हैं कि पाकिस्तान-अमेरिका के रिलेशन कमजोर हो. अब डोनल्ड ट्रंप के आते ही एशिया और मिडिल-ईस्ट पॉलिटिक्स का नया दौर शुरू होगा. अब भारत के प्रधानमंत्री इजराइल का दौरा करने वाले हैं. नरेंद्र मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री होंगे जो इजराइल के दौरे पर जाएंगे. भारत के पॉलिटिकल पंडितों को पूरी उम्मीद है कि आने वाला वक्त में इंडिया- इजराइल रिलेशंस अपनी नई ऊंचाई पर पहुंचेगा.
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