“मुक्तक”
बदला हुआ मौसम बहक बरसात हो जाए।
उड़ता हुआ बादल ठहर कुछ बात हो जाए।
क्यों जा रहे चंदा गगन पर किस लिए बोलो-
कर दो खबर सबको पहर दिन रात हो जाए॥-१
अच्छी नहीं दूरी डगर यदि प्रात हो जाए।
नैना लगाए बिन गर मुलाक़ात हो जाए।
ले हवा चिलमन उडी कुछ तो शरम करो-
सूखी जमी बौंछार की सौगात हो जाए॥-२
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी