“मुक्तक”
फिंगरटच ने कर दिया, दिन जीवन आसान।
मोबाइल के स्क्रीन
पर, दिखता सकल जहान।
बिना रुकावट मान लो, खुल जाते हैं द्वार-
चाहा अनचाहा सुलभ, लिखो नाम अंजान॥-1
बिकता है सब कुछ
यहाँ, पर न मिले ईमान।
हीरा पन्ना अरु कनक, खूब बिके इंसान।
बिन बाधा बाजार में, बे-शर्ती उपहार-
हरि प्रणाम मुस्कान
सुख, सबसे बिन पहचान॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी