“कुंडलिया”
मोहित कर लेता कमल, जल के ऊपर फूल।
भीतर डूबी नाल है, हरा पान अनुकूल॥
हरा पान अनुकूल, मूल कीचड़ सुख लेता।
खिल जाता दु:ख भूल, तूल कब रंग चहेता॥
कह गौतम कविराय, दंभ मत करना रोहित।
हँसता खिलकर खूब, कमल करता मन मोहित॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी