“मुक्तक”
सुधबुध वापस आय करो कुछ मनन निराला।
जीत गई है हार भार किसके शिर डाला।
मीठी लगती खीर उबल चावल पक जाता-
रहा दूध का दूध सत्य शिव विजय विशाला॥-१
हम बचपन के साथी क्या डगर चाहना है।
अभी क्या उमर है क्या जिगर भावना है।
खेल ते तो हैं खग मृग मिल लड़ाते हैं पंजे-
क्या पता किस जन्म से हम तुम आशना हैं॥-२
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी