"मुक्त काव्य"
हाथी सीधे चल रहा
घोड़ा तिरछी चाल
ऊँट अढाई घर बढ़े
गरजा हिन्द महान
शह-मात के खेल में
पाक वजीर बेभान।।
लड़े सिपाही जान लगाकर
पीछे-पीछे प्यादा चाकर
चेस वेष अरु केश का
मत कर अब गुणगान
गिरते पड़ते जी रहे
कर्म करो नादान।।
इक दूजे को मात-शह
जीत- हार विद्यमान
पाक आज चिंतित हुआ
पुलवामा बलवान
कौरव देख गांडीव पार्थ की
धीरज विजय विधान।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी