
“कुंडलिया”
मोती जैसे अक्षर हैं सुंदर शब्द सुजान
भाव मनोहर लिख रही कोरे पन्ने मान
कोरे पन्ने मान बिहान न हो प्रिय तुम बिन
सपने दिन अरु रात विरह बढ़ता है दिन दिन
कह गौतम कविराय आँख असुवन झर रोती
यह पाती नहिं वैन नैन तुम मेरे मोती॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी