फेझत तो बड़ी हॉवे लागल हो। सरकार चाहे जेतना कैह लो आर सत्ता पक्ष भी चाहे झुठलाय दो, सच तो यहे लागो कि आदमी सब के बड़ी तफलिक होय रहल हो। हां , ई बात दोसर हो कि कुछ आदमी एकरा हंसके सहे रहलो तो कुछ कुढ़ करके, पर सहे तो दुयो रहल हो। दू दिन से एते एते आदमी के पास पैसा रहे के बाद भी ओकर पास तरकारी आर दूध खरीदे के पैसा न हो। नून आर हरदी भी दोकानदार सब उधार दियेल तैयार ना है, बताव केतना सरम के बात है। दादा ई सब वैसन आदमी होऊ जे रोज कुआँ कोड़ो हैं तब पानी पीयो हैं। कम से कम उ सबन के साथ ऐसन नाय होना चाही, बड़ी पेहले एगो कहानी पढले होलियों कि कोय आदमी राजवा के ई कैह्के लंगटे घुमयले कि जे कपडा ओकरा पेन्हावल गेले हैं उ कपडवा के सिरिफ नेक इंसान ही देख सकतो। नेक बने के चक्कर में सब राजा के कपडा के बड़ाई करे लागलय। रजवा ई समझे रहले कि शायद ओकरा छोड़के सब उ अदुभुत कपडा को देखे पाय रहल हैं। कहानीया में एगो मासूम लड़का भी हलो, जे चिल्ला चिल्ला के कहो हले देखले रे –देख ले, राजवा तो लंगटे है। इ कहानीया में भी कोय न कोय मासूम सन बच्चा जरूर अयतों, जे चिल्लाय-चिल्लाय के कहतो, आज हमर घर में दूध आर तरकारी नाय अयलो।
हमें परेशान हियो, दादा बहुते परेशान हियो।
विशाल कुमार
गोमिया बोकारो