गोमिया में हर रोज़ जब हम आफ़िस, स्कूल, कॉलेज जाने के लिए घर से निकलते हैं तो हमें रास्ते में कई भिखारी मिलते हैं। हम में से शायद ही कोई ऐसा हो जिसे दिन भर में कोई भिखारी न मिलता हो। कई लोग इन्हें इग्नोर कर देते हैं तो कई लोग भीख दे देते हैं। अब बड़ा सवाल ये है कि क्या हमें भीख देनी चाहिए ? क्या वाकई ये लोग भीख मांगने को मजबूर हैं? और आखिर इस समस्या का समाधान क्या है?
निकला गया तर्क
1. भीख मांगना धंधा बन गया है!
हाल में भारत की आर्थिक विकास दर तेजी से बढ़ी है। लेकिन भिखारियों का मुद्दा अभी भी सबसे बड़ा है। भारत में गरीबी है लेकिन भीख संगठित रूप से मांगी जाती है। एरिया बंटा रहता है, कोई दूसरा उस क्षेत्र में भीख नहीं मांग सकता। भिखारियों को लेकर सरकार द्वारा चलये जा रहे कोई भी अभियान सफल नहीं हो पाता है क्योंकि ऐसी आदत पड़ चुकी है कि कोई काम करना ही नहीं चाहता। कहते भी हैं कि जब बिना किसी काम धाम के सुबह से शाम तक पांच सौ से हजार रुपये मिल जाते हैं तो काम कौन करे..!! और काम करने पर इतना पैसा थोड़े न मिलेगा।
2. अपराध की ओर बढ़ते कदम
आपने कई बार महसूस किया होगा कि भीख मांगने वाले ऐसी अजीब-सी हरकतें करने लगते हैं कि उनसे डर लगने लगता है। यहां तक कि कई बार तो ऐसा भी लगता है कि कहीं कुछ मार के न भाग जाए। इतना ही नहीं, नशे की लत के चलते ये लोग अपराध करने को भी तैयार हो जाते हैं। भीख मांगने के लिए ये लोग बच्चे चुराने और बेचने जैसे बड़े अपराध करने से भी नहीं चूकते। पैकेट मारना और मोबाइल चुराने जैसे काम भी ये लोग करते हैं। गोमिया में दो भीख मांगने वाले बच्चे जिनकी उम्र कोई 10 -12 साल रही होगी बैंक ऑफ़ इंडिया गोमिया शाखा में हाल ही में एक महिला के करीब 15 हजार रूपये प्लास्टिक बेग से ब्लेड मरकर उडा लिए. जो सीसीटीवी फुटेज दिखने के बाद पता चली.
3. लोग क्यों देते हैं भीख?
ज़्यादातर लोग भीख ये समझकर देते हैं कि मांगने वाला ज़रूरतमंद है लेकिन अधिकतर ऐसा होता नहीं। मांगने वालों में से बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो वाकई मजबूर होते हैं। भारत में धर्म के नाम पर कुछ भी किया और करवाया जा सकता है। और कई लोग तो भीख भी धर्म के नाम पर देते हैं। लोग समझते हैं कि मंदिर, दरगाह या किसी भी धार्मिक स्थल के बाहर खड़े लोगों को पैसे या भीख देने से वे किसी की मदद कर रहे हैं, इससे उनके पाप धुल जाएंगे या उन्हें किसी की नज़र नहीं लगेगी आदि। मांगने के धंधे में शामिल लोग, आम आदमी की इसी सोच का फ़ायदा उठाते हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी ज़रूरतमंद की मदद करने की बात कही गई है लेकिन इसके साथ ही ये समझना भी बेहद ज़रूरी है कि
आखिर ज़रूरतमंद है कौन?
इसके अलावा भी कई लोग बस इसलिए भीख देते हैं ताकि वो अपनी कमाई का कुछ हिस्सा गरीबों पर खर्च कर सकें। लोगों की सोच तो सही है पर उनका तरीका गलत है। क्योंकि वे नहीं जानते कि जिन लोगों को वो गरीब सझकर मदद कर रहे हैं वो दरअसल ज़रूरमंद हैं ही नहीं।
क्या है समाधान!
हालांकि केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार भी बेघर और बेसहारा लोगों को आश्रय, स्वास्थ्य सुविधाएं देने जैसी कई योजनाएं बनाती रहती है ताकि इस समस्या का निदान किया जा सके लेकिन सफलता मिलना मुश्किल ही लगता है जबतक कि भीख मांगने पर इस देश में रोक नहीं लग जाती।
ऐसे में ज़रूरी है कि हम सब अपनी तरफ़ से कोशिश करें। लोगों को पैसे देने की बजाए खाना खिलाएं, कपड़े दें या कोई अन्य ज़रूरत का सामान दें। बेशक हम हर रोज़ इस काम में नहीं जुट सकते कि कौन सच में ज़रूरतमंद है और कौन नहीं लेकिन अकसर मांगने वाले को देख कर हम काफ़ी कुछ समझ जाते हैं। तो कुछ भी देने से पहले एक बार सोच लें ताकि आपके द्वारा की गई मदद असल ज़रूरमंद इंसान तक ही पहुंचे। गरीब बच्चों को पढ़ाने या लोगों को काम सिखाने जैसी कोशिशें बेहद लाभदायक साबित हो सकती हैं।
जब भी आपको किसी प्रकार का खतरा महसूस हो तुरंत पुलिस को सुचना दें ताकि समय रहते बचाव किया जा सके।
(नोट: कुछ सिर्फ राजनीति चमकाने कि कोशिश करते है... )