☘️💐☘️आरुषि तैयार होकर चाँद सी दुल्हन बन जाती है , देखने बाले , हर किसी की नज़र आरुषि पर ही थम सी जाती है । वह कोई स्वर्ग की अप्सरा सी लग रही है ।
संयोग ऐसे बन पड़े है कि , इसी शुभ तारीख को सोनालिका के भाई का भी शुभ बिबाह की तारीख तय हो गई है । जिस वजह से चाह कर भी सोनालिका अपनी प्यारी दोस्त आरुषि की शादी में शामिल नहीं हो पा रही है । वह सारी कमी अपने भाई के शादी में ही पूरा करना चाह रही है । ताकि उसे अपनी प्यारी सखी की शादी में शामिल , ना हो पाने का कोई गम न हो ,लेकिन दिल के एक कोने में उसे एक मलाल जरूर है प्यारी सखी की शादी मे नही पहुचने का ।
इधर साहिल कोई न कोई बहाना ढूंढ़ रहा है , कि वो कैसे भी आरुषि की शादी में न शामिल हो । वह उस खूबसूरत परी को किसी और की बनते नहीं देख पायेगा , क्योंकि वह उसे दिलोंं जान से ज्यादा अच्छी लगने लगी है । यही सब सोच -सोच कर वह सचमुच का बीमार रहने लगा है ।
सौंदर्य की शादी के वक़्त पर तो शाहिल सचमुच का ही उठ नहीं पा रहा है, वह इतना बीमार हो चुका है । शादी की एन वक़्त पर जब सौंदर्य , शाहिल को नहीं देखता है तो वह बहुत उदास हो जाता है । जब वह कारण जनता है कि साहिल बहुत ही बीमार है , तो यह जानकर उसे बहुत ही दुःख होता है । सौंदर्य को लगता है कि इतने ज्यादा खुशी का दिन अगर उसके लिये है , तो यह शाहिल के कारन ही आया है । शाहिल को शादी में नहीं आ पाने से सौंदर्य बहुत ही दुःखी है । लेकिन इतने ख़ुशी के दिन को वो ऐसे ही जाया नहीं जाने देंगे । ये सोच वह नोर्मल होने की कोशिश में है । शादी को सभी इंजॉय में लगे है ।
शाहिल को लग रहा है , कि कितना अच्छा हुआ कि मुझे ये बहाना मिला है । वैसे भी कभी आरुषि की शादी देखने की सामर्थ्य मुझमें नहीं होता । आंख बंद किये अपने गम में मगन , बस खुशियों के पटाखे को सुन रहा है । मन ही मन वो आरुषि को ही याद कर रहा है ,उसे तो बस ,वो सोयी हुयी आरुषि ही नज़र आ रही है जिसे वह हॉस्पिटल में देखा था ,इतने करीब से ,परी सी सुंदर वो कितनी प्यारी लग रही थी ......। ये उसे क्या हो रहा है ....। भगवान मुझे रास्ता दिखाये । ये सब सोच वह बिचलित हो रहा है ।
हसीं खुशी शादी संपन्न हो जाती है । संजोग ऐसे बन पड़े है कि ना ही आरुषि की फ्रेंड सोनालिका और ना ही सौंदर्य का फ्रेंड साहिल ही इस शादी को शामिल कर पाया है ।इस शादी से अलग दोनों अपने में मगन है ।
जल्द ही सोनालिका आरुषि और उसके पति से मिलने आयी । आरुषि के पति को वो देखते ही सोच में पर गई ।सोनालिका तो जिस युवक को हॉस्पिटल में अपलक आरुषि को नींद में निहारते देखा था ,उस युवक को ही आरुषि का दूल्हा समझ रही थी ,लेकिन यहाँ दूल्हा जी तो कोई और है , को देख कर सोच में पर गई । वह झटपट लगभग खिचते हुए आरुषि को कोरीडोर की ओर ले गई और विस्मय से कहने लगी... अरे ये कौन है .....। मैंने तो तेरा दूल्हा उसे समझा था ,जो वो तुम्हे हॉस्पिटल में अपलक निहार रहा था , जब तुम सोयी थी । आरुषि भी आश्चर्य हुयी , उसे भी लगता था मेरा दूल्हा वहीं बना है जो मेरे लिए वर्षो परेशान रहा है , वहीं तो मुझे हॉस्पिटल तक में मिलने आ गया था .....।
संजोग ऐसा बना कि उसी समय शाहिल भी दूल्हा दुल्हन से मिलने आ गया .....। उसे घर में प्रवेश लेते ही ,सोनालिका दिखाई दी । सोनालिका का नज़र शाहिल पर परते ही चीखी ....अरे तुम ...! तुम यहाँ भी , फिर उसने लगभग चिल्ला कर आरुषि को आबाज देते हुए बुलायी अरे देख ... ये ना जाने किसे ढूंढते हुये यहाँ तक आ पहुचां है । सोनालिका का उस युवक पर लट्टू होना दूर से ही दिख रहा था । तब तक में दूल्हा जी सौंदर्य भी डायनिन्ग रूम से निकल कर बाहर कोरी डोर में आ गए ,जहां सभी विस्मय से खड़े थे । तभी सोनालिका का परिचय कराते हुए प्यारी दुल्हन आरुषि ने बताया कि ये है मेरी बेस्ट फ्रेंड सोनालिका जो , किसी कारन बस हमारी शादी में नहीं आ पाई और फुर्सत होते ही आ गई है । दूल्हा सौंदर्य ने देखा कि सोनालिका अपलक साहिल को निहारे जा रही है । अपना परिचय पा कर वह शरमा सी गई है । फिर दूल्हा सौंदर्य ने शाहिल का परिचय कराते हुए कहा कि ये है मेरे बेस्ट फ्रेंड शाहिल जो , आप को (दुल्हन आरुषि के ओर बांहे फैला कर इशारा करते हुए ) पाने के लिये मेरी इतनी ज्यदा हेल्प किया है .....।
ये सभी घटना को घर के एक पुराने नौकर कालू बड़ी ध्यान पुर्वक देख व सुन रहा है । और समझने की कोशिश कर रहा है । पर उसे कुछ ज्यादा समझ नहीं आ रहा है ।डायनिंग टेबल पर अनेका - नेक पकवान सजाये गए है । सभी मिल बैठ ठहाको के बीच चाय - नास्ता करने लगे है । मगर सभी का ध्यान कहीं और ही है । ना चाह कर भी शाहिल का ध्यान बार - बार आरुषि की ओर चला जाता है ,जिसे वह हरबराहट में छिपाता है । सोनिलिका छुप कर शाहिल को देखती है । आरुषि इस सभी बातो से अंजान है । घर का नौकर कालू चिन्तित है और सोच रहा है , बड़े होने के नाते मुझे ही सब संभालना है .......जिससे सबों का भला हो ......ये सब तो अभी बच्चे है । आरुषि अपने पति से , एवं बच्चियो को लेकर निश्चिन्त एवम् शांत है ।
नौकर कालू काका बहुरानी आरुषि से निश्चित है , उसे उसपर पूरा विश्वास है । आरुषि उसके कल्पना पर जरूर खड़ा उतारेगी .......। बाबा सौंदर्य तो अच्छे है ही ......कालू काका एक लम्बी साँस लेते है ...........।
सभी चाय नास्ता कर अपने - अपने घर चले जाते है । आरुषि का अपना ड्यूटी चालु हो जाता है । उसके अनुकूल ही सभी कुछ हो रहा है ,जैसा वो चाह रही है । जिन्दगी मज़े में कट रहा है ,पर कालू काका कभी - कभी सोच में पर जाते है । उसे ना जाने एक , अन्जान भय सा लग रहा है पता नहीं क्यू ?....और फिर वह सोच में पर जाता है ......।
उसे लग रहा है अगर बहू रानी पर कोई भी गाज कभी भी जिन्दगी में गिरा तो , हमेशा ही वो सँभालने को तत्पर रहेगा । ये सोच कालू काका चैन की साँस लेने लगते है । उसे लगता है जितना मै बाबा और बहुरानी के लिये सोच रहा हूँ , इतना सोचने के लिए कोई है भी तो नहीं .....। भले मेरे बाद बाबा , बहु को कोई दिक्कत हो जाये । मेरे जीते जी तो वो नौबत नहीं आएगी ,और ना ही मै आने दूँगा ......। है इधर सोनालिका की रातें पता नहीं क्यों ? करवट लेकर गुजर रही है ...। वेसी ही दशा लगभग शाहिल का है ...। वैसे भी दोनों ढंग से सेटल नहीं है । ये सब चिंताएँ भी दोनों को सता रही है .....और राते तारे गिन - गिन कट रही है ....।
इधर बाबा सौंदर्य और बहु आरुषि भी वेखबर चैन की बंशी बजा रहे है ,और जग रहे है , काका कालू पता नहीं क्यों .......।