छंद लावणी मात्रा भार- ३०. (चौपाई १४). १६ ३० पर यति पदांत – आर समान्त- अरो
“गीतिका”
प्रति मन में भोली श्रद्धा हो ऐसा शुद्ध विचार भरो
मानव का कहीं दिल न टूटे कुछ ऐसा व्यवहार करो
जगह जगह ममता की गांछें डाली सुंदर फूल खिले
समय समय पर इक दूजे को पीड़ाहर उपकार धरो॥
मत कर अब अपनी मनमानी जीवन समय अनुसार है
अपनी गाय बछरुवा अपना मत गैरत बीमार वरो॥
उपज सभी की एक सरीखी एक तरह सखी रैन है
तेरी मेरी सुबह कहाँ है सूरज आप अन्हार हरो॥
मत बाटों इस घर को फिर से दीर्घ लघु शब्द भेद में
सृजन शिल्प मन की अभिलाषा भाव प्रसंगनुसार झरो॥
करनी धरनी जिसकी जैसी वैसे नयनभिराम मिले
करतल एक हाथ नहिं बाजे ध्वनि मोहक संसार खरो॥
गौतम जिसके हाथ में लड्डू नाचे है वहीं ज़ोर से
पेट भूख कब जाति देखती रोटी रगर विकार हरो॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी