“गीतिका”
पिया गए परदेश में छोड़ मुझे ससुराल
रब जाने किस हाल में होगे उनके भाल
देखन में सुंदर लगें मुस्कायें दिल खोल
मानों पिय बहुरूपिया नजर चित्त पयमाल॥
कलंगी अस सँवारते तिरछे नैना वाह
फिर आएंगे जब पिया लाल करूँगी गाल॥
रोज लिखूँ चित पातियाँ घायल विरहन गीत
पायल पग लपटा गए बनकर बलमा लाल॥
रैन ले गए दिन दिखा चैन चुराए चोर
नित्य शाम से पूछती कब लाओगे ढ़ाल॥
सावन बिन झूला गया सरसो पीला फूल
आओ मेरे पाहुना ऋतु बसंत मतवाल॥
तक गेसू कचनार है गौतम मीठ खजूर
कदली झुक लहरा रही साजन बिन बे-हाल॥
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी