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प्रेरक

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भगवान बुध ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तप में लगे थे। ज्ञान की प्राप्ति के लिए उन्‍होंने अपने शरीर को बहुत कष्‍ट दिया। कई यात्राएं की, घने जंगलों में कड़ी  साधनाएं की। मगर उन्‍हें निराशा के सिवाय और कुछ

संत कबीर गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर अपने पुत्र कमाल  के साथ रहते थे। उनका रोज का नियम था...नदी में स्नान करके गांव के सभी मंदिरों में जल चढ़ाकर दोपहर बाद भजन में बैठते और शाम को देर से घर लौटते। वह अप

किसी गांव में एक महिला बहुत धार्मिक स्वभाव वाली थी। वह साधु-संन्यासियों का सम्मान करती थी। प्रतिदिन पूजा-पाठ करने के बाद भी उसका मन  अशांत ही रहता था। एक दिन उसके गांव में प्रसिद्ध संन्यासी आए। संत घ

एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो घर आकर उसके बीमार पिता से मिले और उनके लिए प्रार्थना करे। उसके पिता इतने बीमार हैं कि बिस्तर  से उठ भी नहीं सकते हैं।     जब संत घर आए तो देखा कि पिता पलंग पर दो

एक बार की बात है किसी राजा ने यह फैसला किया कि वह प्रतिदिन सौ अंधे लोगों को खीर खिलाया करेगा।  एक दिन खीर वाले दूध में सांप ने मुंह डाला दिया और दूध में विष छोड़ दिया। ज़हरीली खीर को खाकर सौ के सौ अंधे

इस पुस्तक में कुछ ऐसी प्रेरणादायक कहानियाँ हैं जोकि हमारे जीवन में एक नयी उमंग भरने के साथ-साथ हमारी सफलता के रास्ते में आने वाली सभी मुश्किलों को दूर करेंगी । कहानियां हमारी ज़िन्दगी बदल सकती हैं। जि

(1) छेड़ो संन्यासी, छेड़ते छेड़ो वह तान मनोहर, गाओ वह गान, जगा जो अत्युच्च हिमाद्रि-शिखर पर  सुगभीर अरण्य जहाँ है, पार्वत्य प्रदेश जहाँ हैं भव-पाप-ताप ज्वालामय करते न प्रवेश जहाँ है  जो संगीत-ध्वनि-

अद्वैत दर्शन के अनुसार विश्व में केवल एक ही वस्तु सत्य है, और वह है ब्रह्म। ब्रह्मेतर समस्त वस्तुएँ मिथ्या है, ब्रह्म ही उन्हें माया के योग से बनाता एवं अभिव्यक्त करता है। उस ब्रह्म की पुनःप्राप्ति ही

तुममें से बहुतों ने मैक्समूलर की सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘वेदान्त दर्शन पर तीन व्याख्यान’को पड़ा होगा और शायद कुछ लोगों ने इसी विषय पर प्रोफेसर डॉयसन की जर्मन भाषा में लिखित पुस्तक पढ़ी हो। ऐसा लगता है कि पश्

मानव-जाति के भाग-निर्माण में जितनी शक्तियों ने योगदान दिया है और दे रही हैं उन सब में धर्म के रूप में प्रगट होनेवाली शक्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण कोई नहीं है। सभी सामाजिक संगठनों के मूल में कहीं न कहीं

हम जिस कठोपनिषद् की चर्चा कर रहे थे, वह छान्दोग्योपनिषद् के, जिसकी हम अब चर्चा करेंगे बहुत समय बाद रचा गया था। कठोपनिषद् की भाषा अपेक्षाकृत आधुनिक है, उसकी चिन्तन-शैली भी सब से अधिक प्रणालीबद्ध है। प्

मैं तुम लोगों को एक दूसरी उपनिषद् से कुछ अंश पढ़कर सुनाऊंगा! यह अत्यन्त सरल एवं अतिशय कवित्वपूर्ण है । इसका नाम है कठोपनिषद! सर एडविन अर्नाल्ड कृत इसका अनुवादक1 शायद तुममें से कुछ ने पड़ा होगा। हम लोगों

हमने देखा कि हम अपने दुःखों को दूर करने की कितनी ही चेष्टा क्यों न करें, परन्तु फिर भी हमारे जीवन का अधिकांश भाग अवश्यमेव दुःखपूर्ण रहेगा। और यह दुःखराशि वास्तव में हमारे लिए एक प्रकार से अनन्त है। हम

स्वयम्भू ने इन्द्रियों को बहिर्मुख होने का विधान बनाया है, इसीलिए मनुष्य सामने की ओर (विषयों की ओर) देखता है, अन्तरात्मा को नहीं देखता। अमृतत्व-प्राप्ति की इच्छा रखनेवाले किसी किसी ज्ञानी ने विषयों से

जीवात्मा के अमरत्व के प्रश्न के सिवा अन्य कौन-सा प्रश्न अधिक बार पूछा गया है, अन्य किस तत्त्व के रहस्य का उद्घाटन करने के लिए मनुष्य ने सारे जगत् की इतनी अधिक खोज की है, अन्य कौन-सा प्रश्न मानव-हृदय क

स्वभाव से ही मनुष्य का मन बाहर की ओर प्रवृत्त होता है, मानो वह इन्द्रियों के द्वारा शरीर के बाहर झाँकना चाहता हो। आँखें अवश्य देखेंगी, कान अवश्य सुनेंगे, इन्द्रियाँ अवश्य बाहरी जगत् को प्रत्यक्ष करेंग

सर्वत्र विद्यमान फूल सुन्दर है, प्रभात के सूर्य का उदय सुन्दर है, प्रकृति के विविध रंग और वर्णावली सुन्दर है। समस्त जगत् सुन्दर है और मनुष्य जब से पृथ्वी पर आया है, तभी से इस सौन्दर्य का उपभोग कर रहा

अद्वैत वेदान्त की इस एक बात की धारणा करना अत्यन्त कठिन है कि जो ब्रह्म अनन्त है, वह सान्त अथवा ससीम किस प्रकार हुआ। यह प्रश्न मनुष्य सर्वदा करता रहेगा, पर जीवन भर इस प्रश्न पर विचार करते रहने पर भी उस

कवि कहता है “हम जगत् में अपने पीछे मानो एक हिरण्मय मेघजाल लेकर प्रवेश करते हैं ।” पर सच पूछो तो हममें से सभी इस प्रकार महिमामण्डित होकर संसार में प्रवेश नहीं करते; हममें से बहुत से तो अपने पीछे कुहरे

हमने देखा कि अद्वैत वेदान्त का एक आधारभूत सिद्धान्त मायावाद बीज रूप से संहिताओं में भी देखा जाता है, और जिन विचारों का विकास उपनिषदों में हुआ है वे वस्तुतः किसी न किसी रूप में संहिताओं में विद्यमान है

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