shabd-logo

प्रेरक

hindi articles, stories and books related to prerak


लाई हूँ फूलों का हास, लोगी मोल, लोगी मोल? तरल तुहिन-बन का उल्लास लोगी मोल, लोगी मोल?   फैल गई मधु-ऋतु की ज्वाल, जल-जल उठतीं बन की डाल; कोकिल के कुछ कोमल बोल लोगी मोल, लोगी मोल? उमड़ पड़ा पा

आज शिशु के कवि को अनजान मिल गया अपना गान! खोल कलियों के उर के द्वार दे दिया उसको छबि का देश; बजा भौरों ने मधु के तार कह दिए भेद भरे सन्देश; आज सोये खग को अज्ञात स्वप्न में चौंका गई प्रभात; गूढ

मेरा प्रतिपल सुन्दर हो, प्रतिदिन सुन्दर, सुखकर हो, यह पल-पल का लघु-जीवन सुन्दर, सुखकर, शुचितर हो! हों बूँदें अस्थिर, लघुतर, सागर में बूँदें सागर, यह एक बूँद जीवन का मोती-सा सरस, सुघर हो! म

आँखों की खिड़की से उड़-उड़ आते ये आते मधुर-विहग, उर-उर से सुखमय भावों के आते खग मेरे पास सुभग। मिलता जब कुसुमित जन-समूह नयनों का नव-मुकुलित मधुवन पलकों की मृदु-पंखड़ियों पर मँडराते मिलते ये ख

अलि! इन भोली बातों को अब कैसे भला छिपाऊँ! इस आँख-मिचौनी से मैं कह? कब तक जी बहलाऊँ? मेरे कोमल-भावों को तारे क्या आज गिनेंगे! कह? इन्हें ओस-बूँदों-सा फूलों में फैला आऊँ? अपने ही सुख में खिल-खिल

रूप-तारा तुम पूर्ण प्रकाम; मृगेक्षिणि! सार्थक नाम। एक लावण्य-लोक छबिमान, नव्य-नक्षत्र समान, उदित हो दृग-पथ में अम्लान तारिकाओं की तान! प्रणय का रच तुमने परिवेश दीप्त कर दिया मनोनभ-देश; स्निग्ध

आज नव-मधु की प्रात झलकती नभ-पलकों में प्राण! मुग्ध-यौवन के स्वप्न समान,-- झलकती, मेरी जीवन-स्वप्न! प्रभात तुम्हारी मुख-छबि-सी रुचिमान! आज लोहित मधु-प्रात व्योम-लतिका में छायाकार खिल रही नव-पल

एक बार एक नदी में हाथी की लाश बही जा रही थी। एक कौए ने लाश देखी, तो प्रसन्न हो उठा, तुरन्त उस पर आ बैठा। यथेष्ट मांस खाया। नदी का जल पिया। उस लाश पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली। व

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।एक दिन चूहे ने देखा कि कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है। उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक

बिम्बिसार: मगध का सम्राट् अजातशत्रु (कुणीक): मगध का राजकुमार उदयन: कौशाम्बी का राजा, मगध सम्राट् का जामाता प्रसेनजित्: कोसल का राजा विरुद्धक (शैलेन्द्र): कोसल का राजकुमार गौतम: बुद्धदेव सारिपुत्

[शिप्रा-तट] प्रपंचबुद्धि--सब विफल हुआ! इस दुरात्मा स्कन्दगुप्त ने मेरी आशाओं के भंडार पर अर्गला लगा दी। कुसुमपुर में पुरगुप्त और अनन्तदेवी अपने विडम्बना के दिन बिता रहे हैं। भटार्क भी बन्दी हुआ, उसके

एक मन्दिर था। उसमें सभी लोग वेतन पर रखे गए थे। आरती वाला, पूजा कराने वाला, घण्टा बजाने वाला सभी को वेतन मिलता था।   घण्टा बजाने वाला आदमी आरती के समय ईश्वर के भाव में इतना खो जाता था कि होश में ही नह

एक गाँव में एक साधू महाराज रहते थे। साधू महाराज जहाँ भी जाते थे वहाँ नाम जप पर उपदेश देते थे। साधू महाराज की नाम जप पर अगाध श्रृद्धा को देखकर कई लोगों ने उनसे राम नाम की दीक्षा ली थी। कुछ लोग तो उनक

नवास के दौरान माता सीता को प्यास लगी। तभी श्रीरामजी  ने चारों ओर देखा,तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था। कुदरत से प्रार्थना की हे वन देवता, आसपास जहाँ कहीं पानी हो, वहाँ जाने का मार्ग कृपा कर

एक शहर में एक आदमी रहता था। वह बहुत ही लालची था।  उसने सुन रखा था की अगर संतो और साधुओं की सेवा करें तो बहुत ज्यादा धन प्राप्त होता है। यह सोच कर उसने साधू-संतो की सेवा करना प्रारम्भ कर दिया। एक बार

एक छह साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद्द किया करता था। उसकी चाहत थी कि एक समय की रोटी वो भगवान के साथ खाये।     एक दिन उसने एक थैले में पांच-छह रोटियां रखीं और भगवान को ढूंढने निकल पड़

एक सरोवर के तट पर एक खूबसूरत बगीचा था। जिसमें अनेक प्रकार के फूलों के पौधे लगे हुए थे। लोग वहां आते, तो वे वहां खिले तमाम रंगों के  गुलाब के फूलों की तारीफ जरूर करते।     एक बार एक बहुत सुंदर गुलाब क

एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था। चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे पर लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को जहाँ भी इसमें कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे।     जब उस

काशी में एक ब्राह्मण के सामने से एक गाय भागती हुई किसी गली में घुस गई।   तभी वहां एक आदमी आया उसने गाय के बारे में पूछा - पंडितजी माला फेर रहे थे...इसलिए कुछ बोले नहीं... बस हाथ से उस गली का इशारा कर

एक सुबह, अभी सूरज भी निकला नहीं था और एक मांझी नदी के किनारे पहुंच गया था। उसका पैर किसी चीज से टकरा गया, झुक कर उसने देखा, पत्थरों से भरा हुआ एक झोला पड़ा था। उसने अपना जाल किनारे पर रख दिया, वह सुबह

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए