"चौपाली चर्चा"
झिनकू भैया की चौपाली चरचा में तरह तरह के विषय उठा करते हैं और जमकर चर्चा भी होती है, वक्ता और श्रोता अपनी मर्जी से दो खेमों में विभक्त हो जाते हैं और विषय विषयांतर होकर तगड़े तर्क कुतर्क पर अलग राग अलाप कर अपनी बात को मनवाकर झूम जाता है जिसमें सत्य और हकीकत कोसों दूर रहती है तथा दोषारोपण विवाद का जड़ बन जाता है। इसी बेबुनियाद चर्चा में आज का विषय वेद और ब्राह्मण, चर्चा में आकर बड़ें बड़ों को महात कर रहा था कि झिनकू भैया से न रहा गया और उन्होंने जो कुछ कहा वह इस प्रकार है।
इस विषय पर चर्चा करना और इसको उसी रूप में जानना दो अलग अलग पहलू हैं जो मात्र और मात्र मन मनाने की बात है। इसके तथ्यगत निष्कर्ष पर पहुँच पाना असंभवम हेम मृगाश्चरन्ति वाली बात है। ऋषियों की वाणी और देव भाषा को पढ़ना- समझना और उसकी सुलोचना करना किसी ऋषि के लिए ही संभव है जिसका दृश्यमान स्तर अब अदृश्य है अगर कहीं है भी तो वह अनुसंधान की प्रयोगशाला में उलझा हुआ है और निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए वै ज्ञान िक पुष्टिकरण की राह देख रहा है। जबकि वैदिक या लौकिक दर्शन दोनों अपने आप में पूर्णतया दक्ष हैं और बिना किसी अवरोध के अनादिकाल से सत्यता से गतिशील हैं। जिसे विज्ञान और वैज्ञानिक दोनों अपनी स्वकृति अनमने मन से ही सही दे रहे हैं। कहावत है कि अति बुद्धिजीवी वर्ग सत्य को सराहता तो है और उसे आलिंगित भी करता है पर अनुकरण किसी का नहीं करना चाहता कारण उसकी सर्वोपरिता को वह किसी भी दशा में क्षीण नही होने देना चाहता है और यही कारण है कि वेद और ब्राह्मण पर सदैव प्रश्नचिन्ह लगता रहा है जिसका उत्तर शायद किसी के पास नही है और न ही किसी के पास वेद और ब्राह्मण की सर्वोपरिता को सर करने की क्षमता है। तर्क और ताली बजाकर युगों युगों से इसे अस्वीकार किया जाता रहा है इसके विरुद्ध लिखा जाता रहा है और इसके ऐतिहासिक स्वस्थ स्वरूप को अस्वस्थ किया जाता रहा है।साँच को आँच नही, सोना तपकर अपने स्वरूप को निखारता रहा है और आज भी सर्वोपरि है।
वेद का संधि विच्छेद और अर्थ परिभाषा जो भी हो पर मेरे समझ से वृहद इष्ट दर्शन ही इसका आकार और सर्व प्रकार है जिसे वह स्वयं परिभाषित किये हुए है और उसे किसी दूसरी परिभाषा की आवश्यकता नही है। जिन डूबा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठी.......श्रुति पुराण ही अंकित पुराण होता है जो आज उपलब्ध है। ब्राम्हण, जन्मना और कर्मणा है तो कर्मणा और जन्मना भी है अनादि काल का इसका वजूद किसी साक्ष्य का मोहताज नहीं है। मनु और श्वेता ही सबके पूर्वज है, गोत्र इसी का परिचायक है। जाति कर्मणा है, शर्माहम सबका है। ऋषि परंपरा का परिचायक, ब्राह्मण है जो अपने कर्म पर अडिग रहा है और कुलीन रहा है। बाद में लोगों ने इसे जातिवाद की संज्ञा प्रदान कर इसके रूप को अलग आईने से देखने में अपना हित समझा जो आज दृश्यमान है। जातिवाद बहुत बाद की अहंकारी सोच है जो समाज देश और खुद को एक अलग पहचान देकर सत्ता के केंद्र में अपने वजूद को स्थापित करती रही है।शायद यही सोच हमें मानवता से विमुख करती है
इस चौपाल का चिंतन सदैव परोपकारी रहा है जो सबको साथ लेकर अपने सम्मान पर अपने अस्तित्व पर शनै शनै ही सही अलिखित होकर भी ऋषियों के उत्तराधिकार का दायित्व निर्वाहक रहा है जिस पर हमें अतिशय गर्व है। अनावश्यक और अज्ञानी बातें इस चौपाल पर नहीं होनी चाहिए। बड़े आए हैं वेद और ब्राह्मण पर चर्चा करने, जानना समझना कुछ नहीं उछालना नौ नौ पोरसा........
हातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी