वज़्न- 1222 1222 2122 2, काफ़िया-आ, रदीफ़ - " करते हैं इशारो में"
"गज़ल"
चलो जी कुछ ख़ता
करते हैं इशारों में
बवंडर ही खड़ा करते
है इशारों में
कहाँ तक चल सकेंगे
दिनमान चुप होकर
जलाते है अगन दीया
है इशारों में।।
नयी जब रोशनी होगी
तम फ़ना होगा
उड़ाते हैं वो
फतिंगा हैं इशारों में।।
भरा पानी शहर में
ले आग मत जाना
बुझे मन का ठिकाना
है इशारों में।।
कहाँ अब नाँव चल
पाती समंदर देखो
किनारों को भिगा
जाना है इशारों में।।
चलो अच्छा हुआ जो
मिल गए तुम भी
गिराकर के नजर आना
है इशारों में।।
नहीं गौतम गया
रास्ता छोड़कर अपना
लगा दिल मॉंगने
वाला हैं इशारों में।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी