वज़्न--212 212 212 212 अर्कान-- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन, बह्रे- मुतदारिक मुसम्मन सालिम, क़ाफ़िया— लुभाते (आते की बंदिश) रदीफ़ --- रहे
"गज़ल"
झूठ के सामने सच छुपाते रहे
जान लेते हक़ीकत अगर वक्त की
सच कहुँ रूठ जाते ऋतु रिझाते रहे।।
ये सहज तो न था खेलना आग से
प्यास को आब जी भर पिलाते रहे।।
भर गई बाढ़ में जब छलककर नदी
बह चली मन मुरादें चह बनाते रहे।।
डूबकर घास फिर से हरी हो गई
तुम खड़े पेड़ माफक सुखाते रहे।।
मान लो बात मेरी न जाओ इतर
घर न बनता मफत प्यार पाते रहे।।
गौर गौतम किया भाँपकर धार को
मीन सी राह उलटे कुलबुलाते रहे।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी