मापनी - 22 22 22 22
"गीत"
कितना सुंदर मौसम
आया
साथी तेरा साथ
सुहाया
पकड़ चली हूँ तेरी
बाहें
आँचल मेरा नभ
लहराया।।
रहना हरदम साथ हमारे
शीतल है कितनी यह
छाया।।
नाहक उड़ते विहग
अकेले
मैंने भी मन को
समझाया।।
दूर रही अबतक छवि
मेरी
आज उसे फिर वापस
पाया।।
चँहक रही हूँ खेल
रही हूँ
साजन तूने मन
हरषाया।।
गौतम तेरा बाग खिला
है
भौंरा सावन को ले
आया।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी