मात्रा भार-16+14=30........
"ग़ज़ल/गीतिका"
देख पुराने पथपर हमने, कितने दीपक जला दिए
खिली रोशनी गलियारों में, बाती से लौ मिला दिए
दूर हुए क्या गहन अंधेरे, अरमानों से पूछ जरा
बिठा दिए हर कोने जुगनू, अनहद तारे खिला दिए॥
दूर गगन उड़ चले परिंदे, अपनी अपनी साख लिए
वेल चढ़ाकर छांव बना दी, वापस उनको बुला दिए॥
झूम रही अब उनकी डाली, लेकर अपनी अंगड़ाई
बिते पतझड़ नित नए कोपल, सिकुड़ी कलियाँ खिला दिए॥
बिन चमन कब मोल रे माली, अपना रंग उतार गया
भरी रंग जिसकी जो पीछीं, हाथ पकड़ के हिला दिए॥
चाह बिना की राह न मिलती, चाह जगी तो राह मिली
हर चौराहे घूम घूम कर, तीरें पथ तेरे घुमा दिए॥
गौतम मन को तनिक मिला ले, अपना स्वर अपनी वीणा
राग विरागे शब्द पिपासे, छंद सृजन मन सजा दिए॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी