मात्रा भार- 28.....
गजल/गीतिका
देता हूँ इक पुष्प जिसे गुलदस्ते में रख देना
सिंचा मैंने इसे जतन से न परदे में ढँक देना
अरमानों से भरी हुई कोमल पंखुड़िया इसकी
मधुर सुगंधित खुश्बू है आहें उस में मत देना।।
चंचल हैं निश्छल नैना खेल े खाए बचपन में
सदा पूजती है ममता को समता इसमें भर देना।।
नाजों से पल बड़ी हुई मीत बना लेना इसको
अटखेलियाँ घरौंदे बुनती बंधन तन में मत देना।।
शानों शौकत बरकत करतब जिसकी परछाई में
कभी भूलकर भी इसको क्रंदन किश्में मत देना।।
पुलकित जो बगिया को करती अपनी पंखुड़ियों से
नवतर है अंकुर कोपल पतझड़ गत में मत देना।।
गौतम यह चाहत की मल्लिका अब तेरे पाले में
पनपे यदि नादानी नवतर उसको सदमें मत देना॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी