"मुक्तक"
कितना मुश्किल कितना निश्छल, होता बचपन गैर बिना।
जीवन होता पावन मंदिर, मूरत सगपन बैर बिना।
किसकी धरती किसका बादल, बरसाते नभ उत्पात लिए-
बच्चों की हर अदा निराली, लड़ते- भिड़ते खैर बिना।।-1
प्रत्येक दीवारें परिचित हैं, इनकी पहचान निराली।
जग की अंजानी गलियारी, है सूरत भोली-भाली।
हँसती रहती महफ़िल इनकी, जो बैठी बिन कठिनाई-
बच्चा है पर कितना अच्छा, आतुरता प्रिय मतवाली।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी