"विधा- दोहा"
बादल है आकाश में, लेकर अपना ढंग
इंद्रधनुष की नभ छटा, चर्चित सातों रंग।।-1
दाँतों में विष भर चला, काला नाग भुजंग।
नाम सुने तो डर गए, सर्प मुलायम अंग।।-2
जीवन की अपनी व्यथा, हर जीवों के संग।
इक दूजे को हम सभी, क्यों करते हैं तंग।।-3
सरेआम होता गया, नियम नगर का भंग।
कभी टूटते हैं महल, कभी झोपड़ी तंग।।-4
बड़े -बड़े फैशन गए, लगा-लगा कर रंग।
झूमर झुमका झाँझरी, बदला प्रचलन ढंग।।-5
मोहन की गोकुल गली, औ मथुरा का ढंग।
मधुवन की मुरली मधुर, खिला सवलिया रंग।।-6
राम लखन दोनों चले, सीता माता संग।
वन मंगलमय हो गया, खिले फूल बहुरंग।।-7
गंगा जल निर्मल परम, यमुना नीला रंग।
सरयू जी का धवल पट, नमन शारदा ढंग।।-8
कश्मीरी झीलें भली, क्यों फूलों में जंग।
मगर फूल बिखरे हुए, क्योंकर बिगड़ा ढंग।।-9
चाहत की बौछार में, मानव मन बेढंग।
सब कुछ भूला जा रहा, चढ़ा अनोखा रंग।।-10
बाढ़ गयी बरखा गयी, आयी ऋतु बहुरंग।
लिए दिवाली आ रही, रंग स्वच्छता ढंग।।-11
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी