मदन छंद या रूपमाला छंद एक अर्द्धसममात्रिक छन्द है, जिसके प्रत्येक चरण में 14 और 10 के विश्राम से 24 मात्राए है, पदान्त गुरु-लघु से होता है। मापनी- 2122 2122 2122 21
“रूपमाला छंद”
बोझ अब उठता नहीं है, बढ़ गया व्यभिचार
हर गली कहने लगी है, आपसी हो प्यार
घर सिकुड़ता जा रहा हैं, क्रोध की बौछार
जल रही है धूप आँगन, तुलसी है बीमार॥
वक्त पे फ़रियाद होगी, वक्त के संसार
वक्त है पहचान करलो, वक्त के सरदार
ऋतु बदल देती है मौसम, बाग वन विस्तार
भर रही क्यूँ झोलियाँ हैं, पाथर पहर पहार॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी