वीणा की झंकार दे,मन के तार संवार दे !
हंस वाहिनी माँ कमलासिन,हमको अपना प्यार दे !!
मीरा,सूर,कबीरा ने भी माँ चरणों में सुमन चढ़ाये,
तुलसी ने मानस में जी भर तेरे ही इच्छित गुण गाये,
मेरी कल्पना की उड़ान बन,रचना को श्रंगार दे ।
वीणा की झंकार दे,मन के तार संवार दे !
हंस वाहिनी माँ कमलासिन,हमको अपना प्यार दे !!
आदि कवि तो नहीं मगर माँ भटक हूँ शब्दों में,
अपने तान की सुधि विसार माँ,सिमट रहा हूँ छंदों में,
भाव में नैया आन फासी माँ ,कर में निज पतवार दे |
वीणा की झंकार दे,मन के तार संवार दे !
हंस वाहिनी माँ कमलासिन,हमको अपना प्यार दे !!
हम महलों के राग अलापें,ऐसी अपनी चाह नहीं,
गीत प्यार के गाते-गाते मन का मिटा गुवार नहीं,
शलभों को जलने से बचा ले ,दीप में वो मनुहार दे |
वीणा की झंकार दे,मन के तार संवार दे !
हंस वाहिनी माँ कमलासिन,हमको अपना प्यार दे !
सार दे माँ शारदे !!