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सहज ज्योतिष

16 नवम्बर 2022

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11- ज्योतिष में राशि का प्रयोजन-

ज्योतिष में राशि प्रयोजन को इस प्रकार समझा जा सकता है कि बारहों राशियों के स्वरूप केअनुसार ही इनके जातकों का उसी प्रकार का स्वरूप भी बताया गया है। किसी जन्म कुंडली में राशि तथा ग्रहों के स्वरूप के समन्वय के आधार पर ही फलादेश आदि किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में दो मानवों अथवा वर-वधु की आपसी मित्रता-शत्रुता तथा उनके आपसी तालमेल, सामंजस्यव स्वभाव आदि केअन्य मिलान के लिये भी राशि स्वरूप बेहद उपयोगी माना गया है। इस प्रकार के मिलाप के लिये जो विधि दी गई वह एकदम संक्षिप्त में इस प्रकार समझी जा सकती है।

-जैसे पृथ्वी तत्व तथा जल तत्वीय राशियों के जातकों में मित्रता रहती है। इसी प्रकार वायु तत्वीय तथा अग्नि तत्वीय राशि वाले जातकों में भी आपस में मित्रता रहती है।

-इसके विपरीत, अग्नि तत्वीय तथा पृथ्वी तत्वीय राशि के जातकों में मैत्री न हो कर उनमें परस्पर विरोध व शत्रुता होती है। इसी प्रकारअग्नि तत्वीय तथा जलीय, जलीय तथा वायु तत्वीय राशि वाले जातकों में भी मित्रता न होकर परस्पर विरोध व शत्रुता रहती बताई जाती है क्योंकि इनके गुण विपरीत व सर्वथा असमान हैं।

इन द्वादश राशियों में से सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु तथा मकर इन छहों राशियों का भगणापति सूर्य कहा गया है।यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में सूर्य के इस भगणार्थ चक्र में अधिक ग्रह बैठे हों तो वह जातक तेजस्वी होगा।इसी प्रकार,
कुंभ, मीन, मेष,
वृष, मिथुन तथा कर्क इन छहों राशियों का भगणापति चंद्रमा को कहा जाता है। चंद्रमा के भगणचक्र मेंअगर अधिक ग्रह जा बैठे हैं तो ऐसे जातक का स्वभाव कोमल, विनम्र व मृदु होता है।

राशियों को भी वर्ण-व्यवस्था में बांधा गया है।जैसे-

-वृष, वृश्चिक तथा मीन इन तीनों को ब्राह्मण वर्ण की राशियां माना जाता है।

-मेष, सिंह तथा धनु राशियां क्ष्त्रिय वर्ण की कही गई हैं।

-मिथुन, तुला तथा कुंभ राशियों को वैश्य वर्ण की माना गया है।

-कर्क, कन्या तथा मकर राशियों को शूद्र वर्णी माना गया है।

इन विभिन्न राशियों में जन्म लेने वाले जातकों में इन वर्णों के अनुसार गुण होते हैं। जैसे ब्राह्मण राशि वर्ण में जन्मे जातकों में सात्विकता, क्षत्रिय वर्ण की राशियों वाले जातकों में क्षत्रियता, वैश्य वर्णी राशियों में जन्मे जातकों में राजस तथा शूद्र वर्णी राशियों में जन्म लेने वालों में तामस गुणों की प्रधानता होगी ऐसा माना जाता है। लेकिन इस वर्ण विभाजन को जाति संबंधी न समझा जाए। प्रत्येक राशियों में जन्म लेने वाले जातकों पर ग्रह संचरण के अनुसार ही उपरोक्त प्रभाव बनते हैं। जैसे यदि ब्राह्मण कुल में जन्मे किसी बालक के ग्रह-नक्षत्र आदि कू्रर हैं तो उसके सात्विक गुणों में कमी आएगी।आगे, उसके लालन-पालन पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। अतः इन प्रभावों के लिये बहुत सी अन्य बातों पर भी गौर करना जरूरी होता है।

इस संदर्भ में,

यह बात हम अच्छी तरह जान लें कि ये सब वर्ण आदि कालीन मानव के ही द्वारा बनाए गए हैं। मानव अपने कर्मों से ही ब्राह्मण या शूद्र होता है। सो यह बिल्कुल संभव है कि ब्राह्मण के यहां जन्मा बालकअपने कर्मों व विचारों से निम्न स्तर का हो सकता है। और यह भी उतना ही संभव है कि शूद्र के परिवार में जन्म ले कर एक बालक किसी ब्राह्मण से भी श्रेष्ठ हो सकता है। ये समस्त व्यवस्था कर्म आधारित है ।केवल किसीअच्छे या निम्न परिवार में जन्म लेने से ही व्यक्ति श्रेष्ठ या निम्न नहीं हो सकता। यह निर्विवाद है। खैर,

नीचे मैं देवनागरी अक्षरों केअनुसार अपनी राशि का ज्ञान पाने की विधि दे रही हूं। इसे अक्षर विधि भी कहा गया है।

मेष राशि --चू चे चो ला ली लू ले लो आ।

वृष राशि--ई उ ए ओ वा वी वू वे वो।

मिथुन राशि--का की कू घ ड़़ छ के को हा।

कर्क राशि--ही हू हे हो डा डी डू डे डो।

सिंह राशि--मा मी मू मे मो टा टी टू टे।

कन्या राशि--टो पा पी पू ष ण ठ पे पो।

तुला राशि--रा री रू रे रो ता ती तू ते।

वृश्चिक राशि-तो ना नी नू ने नो या यी यू।

धनु राशि--ये यो भा भी भू धा फा ढा भे।

मकर राशि--भो जा जी खी खू खे खो गा गी।

मीन राशि-- दी दू थ झ इं य दे दो चा ची।

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12- राशि स्वामी

किसी भी जन्म कुंडली में जातक की राशि तथा ग्रहों के आधार पर जातक का फलादेश बताने का विधान है। प्रत्येक राशि का अपने स्वामी के अनुसार गुण-धर्म होता है। अतः फलादेश के लिये यह जानना आवश्यक है कि किस राशि का कौन स्वामी है ताकि उसके गुण-धर्मों को देख कर जातक के लिये उचित फलादेश करने में सुविधा हो।

-मेष तथा वृश्चिक राशियों का स्वामी मंगल कहा गया है।

-वृष तथा तुला राशियों का स्वामी शुक्र को बताया गया है।

-कन्या तथा मिथुन राशियों का स्वामी बुध है।

-कर्क राशि का स्वामी चंद्र है।

-सिंह राशि का स्वामी सूर्य है।

-मीन तथा धनु राशियों का स्वामी गुरू कहा गया है।

-मकर तथा कुंभ राशियों का स्वामी शनि है। तथा,

-कन्या का स्वामी राहू तथा

-मिथुन का स्वामी केतु बताया गया है।

इसे इस चित्र के द्वारा अच्छी तरह से समझा जा सकता है।

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13- राशियां तथा अंग अंग निर्धारण-

उपरोक्त द्वादश राशियों को काल पुरूष के अंग मानते हुए इन्हें मानव अंगों में इस प्रकार निर्धारित किया गया है।

-मेष राशि को सिर में अवस्थित माना गया है।

-वृष को मुख में

-मिथुन को स्तनों अथवा वक्ष के मध्य भाग में

-कर्क को हृदय स्थल में

-सिंह को उदर अथवा पेट में

-कन्या को कमर में

-तुला को पेडु में

-वृश्चिक को लिंग में

-धनु को जंघा में

-मकर को दोनों ही घुटनों में

-कुंभ को दोनों जंघाओं में,
तथा

-मीन को दोनों पैरों में अवस्थित माना गया है।

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14- जन्म कुंडली के सब भावों के कारक ग्रह-

जब कोई ग्रह किसी भाव के लिये कारक बताया गया है तो इसका अर्थ है कि उसके शुभ अथवा अशुभ प्रभाव को कोई रोक नहीं सकता। नौ के नौ ग्रह जन्म कुंडली के किसी न किसी भाव में अपना कारकत्व रखते हैं।

नीचे इसे समझा रही हूं।

-सूर्य कारक है प्रथम भाव यानि लग्न भाव का।

-चंद्र कारक है चौथे अर्थात मातृ भाव का।

-मंगल कारक है तृतीय तथा आठवें भाव का।

-बुध कारक है सप्तम भाव का।

-गुरू कारक है द्वितीय, पंचम, नवम तथा ग्यारहवें भाव का।

-शुक्र कारक है सप्तम भाव का।

-शनि कारक है आठवें तथा दसवें भाव का।

-राहू को बारहवें भाव का,
तो

-केतु को छठवें भाव का कारक माना गया है।

देखें चित्र नीचे -

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ग्रहों में सूर्य तथा चंद्र को राजा की पदवी मिली हुई है। बुध को युवराज की, मंगल सेनापति है, गुरू तथा शुक्र को मंत्री तथा शनि को भृत्य के स्थान पर रखा गया है।

इसके अतिरिक्त-

15- लग्न के कारक ग्रह

यहां बारहों लग्नों के कारक ग्रहों की जानकारी भी मैं पाठकों की सुविधा के लिये दे रही हूं। यह जान लें कि जितनी राशियां हैं उतनी ही संख्या में लग्न हैं। बारह राशियां हैं तो बारह ही लग्न हुईं। इन बारह लग्नों के कारक ग्रह निम्नांकित रूप से समझे जाने चाहिये-

1-मेष लग्न के कारक ग्रह-------गुरू, सूर्य, मंगल।

2-वृषभ लग्न के कारक ग्रह------बुध, शुक्र, शनि।

3-मिथुन लग्न के कारक ग्रह------बुध, चंद्र, शुक्र ।

4-कर्क लग्न के कारक ग्रह-------मंगल तथा चंद्र।

5-सिंह लग्न के कारक ग्रह-------मंगल तथा सूर्य।

6-कन्या लग्न के कारक ग्रह------बुध तथा शुक्र।

7-तुला लग्न के कारक ग्रह-------बुध, शुक्र व शनि।

8-वृश्चिक लग्न के कारक ग्रह-----चंद्र, गुरू, मंगल।

9-धनु लग्न के कारक ग्रह-------चंद्र व गुरू।

10-मकर लग्न के कारक ग्रह------बुध, शुक्र तथा शनि।

11-कुंभ लग्न के कारक ग्रह-------गुरू, शुक्र व शनि।

12-मीन लग्न के कारक ग्रह-------सूर्य,गुरू व मंगल।

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रचनाएँ
सहज ज्योतिष
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आत्म-विकास के साथ-साथ लोक-कल्याण अर्थात मानव-कल्याण ही जयोतिष विद्या के विकास के मूल में विद्यमान माना गया है। इसमें माना गया है कि ग्रह वास्तव में किसी जातक को फल-कुफल देने के निर्धारक नहीं हैं बल्कि वे इसके सूचक अवश्य कहे जा सकते हैं। यानि ग्रह किसी मानव को सुख-दुख, लाभ-हानि नहीं पहुंचाते वरन वे मानव को आगे आने वाले सुख-दुख, हानि-लाभ व बाधाओं आदि के बारे में सूचना अवश्य देते हैं। मानव के कर्म ही उसके सुख व दुख के कारक कहे गए हैं। ग्रहों की दृष्टि मानो टॉर्चलाइट की तरह आती है कि अब तुम्हारे कैसे-कौन प्रकार के कर्मों के फल मिलने का समय आ रहा है। अतः मेरी नजर में ज्योतिष के ज्ञान का उपयोग यही है कि ग्रहों आदि से लगने वाले भावी अनुमान के आधार पर मानव सजग रहे। यह ध्यान रखना अत्यंत जरूरी है कि केवल ग्रह फल-भोग ही जीवन होता तो फिर मानव के पुरूषार्थ के कोई मायने नहीं थे, तब इस शब्द का अस्तित्व ही न आया होता। हमारे आचार्य मानते थे कि पुरूषार्थ से अदृष्ट के दुष्प्रभाव कम किये जा सकते हैं, उन्हें टाला जा सकता है। इसमें ज्योतिष उसकी मदद करने में पूर्ण सक्षम है। उनका मत था कि अदृष्ट वहीं अत्यंत प्रबल होता है जहां पुरूषार्थ निम्न होता है। इसके विपरीत, जब अदृष्ट पर मानव प्रयास व पुरूषार्थ भारी पड़ जाते हैं तो अदृष्ट को हारना पड़ता है। प्राचीन आचार्यों के अभिमत के आगे शीश झुकाते हुए, उनके अभिमत को स्वीकारते हुए मेरा भी यही मानना है कि ज्योतिष विद्या से हमें आने वाले समय की, शुभ-अशुभ की पूर्व सूचना मिलती है जिसका हम सदुपयोग कर सकते हैं। हाथ पर हाथ धर कर बैठने की हमें कोई आवश्यकता नहीं कि सब कुछ अपने आप ही अच्छा या बुरा हो जाऐगा। यह कोई विधान रचने वाला शास्त्र नहीं कि बस् अमुक घटना हो कर ही रहेगी, बल्कि यह तो सूचना देने वाला एक शास्त्र है ! यह बार-बार दोहराने की बात नहीं कि आचार्यों, मुनियों, ऋषियों ने ज्योतिष में रूचि इसलिये ली होगी कि मानव को कर्तव्य की प्रेरणा मिले। आगत को भली-भांति जान कर वह अपने कर्म व कर्तव्य के द्वारा उस आगत से अनुकूलन कर सके ताकि जीवन स्वाभाविक गति से चलता रह सके।
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