गतांक से आगे
रवि और विनोद डिनर लेकर विनोद के कमरे में आ गये । उनके साथ साथ मृदुला भी आने लगी तो रवि ने उसे टोक दिया "अरे उधर कहाँ जा रही हो मैडम ? दो बचपन के यार इतने साल बाद मिले हैं तो उन्हें गपशप करने दीजिए । थोड़ा बचपने में जीने दीजिए । आज तो हम दोनों जी भरकर गप्पें हांकेंगे । भई, आज हमें रोकना टोकना मत, हां "।
"हां हां , तो मैं कौन सा दाल भात में मूसल चंद बन रही हूँ । खूब करो गपशप । ऐसे अवसर आते ही कितने हैं ? आप और आपके दोस्त के बीच में मैं दाल भात में मूसलचंद नहीं बनने वाली । मैं तो चली । कुछ जरूरत हो तो रामू काका को आवाज दे लेना । बच्चों को भी तो देखना है मुझे अभी" ? और मृदुला चुपके से खिसक ली वहां से ।
रवि और विनोद दोनों सोफे पर पसर गये । अचानक रवि को याद आया कि विनोद के यहां आने का कारण तो पूछा ही नहीं ? कितनी देर से बकबक किये जा रहा है वह मगर काम की बातें याद ही नहीं आई उसे । बड़ा भुलक्कड़ हो गया है वह । फिर उसने विनोद से यहां आने का कारण पूछा और यह भी पूछा कि उसका पता उसे कहाँ से मिला ?
"इतने बड़े आदमी का पता मालूम करना कोई कठिन काम है क्या ? गांव में हर किसी से पूछ लो । सब जानते हैं आपको । आखिर पूरे गांव की शान हैं आप । बस, ऐसे ही मिल गया आपका पता" ।
"तो फिर अब वह बात बताओ जिसके लिये तुम इतने सालों के बाद इतनी दूर चलकर मेरे पास आये हो । बताओ , ऐसी क्या बात है" ?
विनोद इस बात पर एकदम से खामोश हो गया । चेहरा झुका लिया उसने अपना । संकोच के कारण वह कुछ कह नहीं पा रहा था । मन में द्वंद्व का सागर लहरा रहा था । एक लहर आती और जुबां खुलने लगती लेकिन इतने में दूसरी लहर आकर मुंह पर ताला जड़ जाती । वह किनारे पर खड़ा का खड़ा ही रह जाता । ना इधर जा सकता था और ना उधर ।
उसे असमंजस में देखकर रवि उसके पास आ गया और उसका हाथ अपने हाथों में थामकर कहने लगा "एक बात बता विनोद , ऐसी क्या बात है जिसे कहने में इतनी हिचकिचाहट हो रही है तुझे ? जिस बात को कहने के लिए तू इतनी दूर आ गया फिर कहने से हिचक क्यों रहा है ? या तो तुझे मुझ पर यकीन नहीं है कि मैं वह काम कर पाऊंगा या नहीं या फिर मुझसे कुछ छिपा रहे हो तुम । बताओ ना आखिर बात है क्या" ? रवि ने चिंतित होते हुए पूछा ।
"समझ ही नहीं आ रहा है कि बात कहां से शुरू करूँ ? मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि मुझे यहां इतना मान सम्मान मिलेगा । आज के जमाने में कौन याद रखता है अपने पुराने दोस्तों को ? सब मतलब के साथी होते हैं । बस, आपकी सरलता, मासूमियत ने मुझे मालामाल कर दिया है । अब डर लग रहा है कि अगर मैं कोई काम बता दूं तो मैं कहीँ अपनी नजरों में ही ना गिर जाऊं कहीं । बस, इसी उहापोह में फंसा हुआ हूँ" । विनोद ने अपनी उलझन सामने रख दी ।
"अबे साले, तू बताता है या फिर मैं तेरा क्रिया कर्म करने की तैयारी शुरू करूँ" । यह रवि का पेट डॉयलॉग था । अब विनोद की सारी हिचकिचाहट, संशय , डर सब काफूर हो गये । जैसे उसमें एक नयी जान आ गयी हो । उसके मुंह पर भी एक अजीब सी चमक आ गयी थी । उसने पूछा " तुम बेला को जानते हो " ?
रवि एकदम से चौंका । "कौन बेला" ?
विनोद को जैसे पता था कि रवि यही कहेगा इसलिए वह कहने लगा "वही बेला जो अपने साथ स्कूल में पढती थी" ।
रवि अपने दिमाग पर जोर डालने लगा मगर उसे कुछ याद नहीं आ रहा था । उसकी यह हालत देखकर विनोद बोला " भूल गये ? अरे , वो दो चोटी वाली" ?
रवि को अभी भी कुछ याद नहीं आ रहा था इसलिए वह मन ही मन झुंझला रहा था । विनोद उसकी इस दशा पर चकरा रहा था । आखिर में उसने अचूक बाण चलाया । "दो ऐंटीना वाली को भूल गये क्या" ?
"ओह माई गॉड ! उसे कैसे भूल सकता हूँ भला ? उसने मुझे कितनी तकलीफ पहुंचाई है , ये बात मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ" । रवि का चेहरा कठोर हो गया था ।
"बस, मैं इसी बात से हिचकिचा रहा था कि पता नहीं तुम बेला के नाम से कैसे रिएक्ट करोगे ? उसका नाम आते ही पता नहीं तुम क्या कर दोगे ? इतने साल तक आपके मन में जो कुछ भरा होगा उसके प्रति कहीं वह तूफान बन कर सब कुछ तहस नहस नहीं कर दे । इसी आशंका के बादल छाये हुये थे इधर " । विनोद ने बड़ी उदासी के साथ कहा ।
थोड़ी देर तक कमरे में खामोशी पसरी रही । दोनों ही आदमी अपनी पुरानी यादों में खो गए । किस तरह सब बच्चे साथ साथ खेलते कूदते थे । लड़के लड़कियों में कोई भेद नहीं करता था । "अमृत - विष" , छुप्पम छुपाई , लंगड़ी टांग , कोड़ा चमार साई पीछे देखे मार खाई , रुमाल झपट्टा, मारधड़ी को मीठो खेल, खो खो, कबड्डी, पंजा लड़ाई , सतोलिया, कंचे, गुट्टे सब । कुछ खेल यद्यपि लड़कियों के थे जैसे गुट्टे, लेकिन कुछ लड़के भी खेल लेते थे । खेल खेल में सब बच्चे लड़ते भी खूब थे लेकिन फिर तुरंत एक भी हो जाते थे ।
बेला बहुत तेज तर्रार लड़की थी । उसके पिता JEN थे । खूब गोरी चिट्टी । फूले फूले गाल रूई के गोले से लगते थे । बड़ी बड़ी आंखें मासूमियत से भरी रहती थी । लंबे काले घने बाल कमर से भी नीचे आते थे उसके । एक चोटी से तो काम ही नहीं चलता था उसका । इसलिए उसकी मम्मी दो चोटियां बनाती थी उसकी । एक बार खेल खेल में एक लड़की से उसकी लड़ाई हो गई । उस लड़की ने झट से उसके बाल कसकर पकड़ लिये और जोर से खींच लिए । बेला दर्द से कराह उठी थी । उसकी बड़ी बड़ी आंखों से आंसू बहने लगे । बस, उसने उस दिन ठान लिया था कि ये बाल उसकी जान के दुश्मन हैं । अगले ही दिन उसने वो बाल कटवा दिये थे । कैसा लगा होगा उसके मम्मी पापा को जब उसके सुंदर घने काले बालों की शवयात्रा निकली होगी । कलेजा मुंह को आ गया होगा उनका । मगर बेला की जिद के आगे लाचार हो गये होंगे वे । तभी तो इतने प्यारे बाल कटवाने पड़े थे उन्हें ।
रवि कक्षा में सबसे होशियार छात्र था । हालांकि शैतानी बहुत करता था । घर पर तो पढ़ता ही नहीं था लेकिन फिर भी कक्षा में प्रथम वही आता था । बेला लाख कोशिश करने के बाद भी दूसरे स्थान पर आती थी । इसी बात से वह चिढ़ती थी । वह प्रथम आना चाहती थी मगर रवि उसकी राह रोके खड़ा हुआ था । विनोद का तो पढ़ाई लिखाई से दूर दूर तक वास्ता था ही नहीं । मटरगश्ती करने के लिए ही आता था स्कूल । बस जैसे तैसे पास हो जाया करता था । रवि और बेला में सवाल पहले करके दिखाने की होड़ लगी रहती थी ।
बेला चूंकि रवि से मन ही मन ईर्ष्या रखती थी इसलिए उसे रवि को अपमानित करने में बड़ा मजा आता था । कक्षा में तो वह आगे निकल नहीं पाती थी तो उसका बदला ऐसे ही लेती थी वह । अगर गलती से भी रवि का कोई भी अंग बेला से छू जाये तो वह इतने जोर से चीखती थी जैसे उसे रवि ने कितनी तेज मारा है । टसुए बहाने में उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता था । उसके रोने की आवाज सुनकर गुरुजी दौड़े दौड़े आते और रवि को खूब उल्टा सीधा सुनाते थे । कभी कभी तो मारते भी थे , वो भी बुरी तरह । बेचारा रवि , निर्दोष होते हुये भी अपराधी सा महसूस करता था । रवि की ऐसी हालत देखकर बेला को असीम आनंद मिलता था । बेला की इन हरकतों के कारण रवि बेला से दूर दूर ही रहने की कोशिश करता था । दूसरी लड़कियां भी रवि से बेला की बुराई करती रहती थी । दूसरी लड़कियों के बीच रवि कन्हैया की तरह लगता था । इससे बेला और भी चिढ़ जाती थी ।
समय ऐसे ही गुजरता रहा । दिन पंछी बनकर उड़ते रहे । लड़ाई, पढ़ाई , पिटाई, खिलाई सब साथ साथ चलते रहे । कभी कुट्टी तो कभी अब्बा । कभी रूंसना कभी मनाना । कभी मान कभी अपमान । विनोद रवि का हनुमान था । रवि की हर बात मानता था विनोद । दोनों एक साथ एक ही जगह पर बैठते थे , आगे की पंक्ति में । बांयी ओर लड़के तथा दांयी ओर लड़कियां । बीच में रास्ता । दरी पट्टियां होती थी बैठने के लिए । एक बस्ता होता था । एक स्लेट और उस पर लिखने के लिये कच्ची खड़ी । कभी कभी किताब , स्लेट को लेकर भी लड़ाई हो जाती थी आपस में । विद्यालय जीवन शायद ऐसा ही होता है ।
शेष अगले अंक में
हरिशंकर गोयल "हरि"
18.12.21