ईरान के नयेराष्ट्रपति इब्राहीम रईसी कट्टरपंथियों की पसंद है डॉ शोभा भारद्वाज ईरानीक्रान्ति राजशाही के खिलाफ जन क्रान्ति थी जिसमें स्टूडेंट्स ने बढ़ चढ़ कर हिस्सालिया था लेकिन धर्म के नाम पर सत्ता पर मौलानाओ ने पूरी तरह कब्जा कर इस्लामिकगणराज्य की स्थापना की .ईरान के बाशिंदे कहते थे मुल्लाओं ने
चलो फिर शुरू करते हैजो पन्ने बेरंग हो गयेउनको नया रंग देते हैटूट कर जो बिखरी है जिंदगीउसको फिर जोड़ते हैजो छूट गए है उन्हें भूलबाकि को साथ ले आगे बढ़ते हैइस जिंदगी में बहुत से रंग हैंहर रंग को फिर से जीते हैजब तक जिंदगी है तब तकइस जिंदगी को खुलकर जीते हैचलो फिर जिंदगी जीते हैचलो फिर शुरू करते है....-अ
किस बात की चिन्ता हैं तूझेमैं साथ हूँ तेरेकरता नही वादा जिंदगी भर दूंगा तेरा साथबल्कि जब तक तु साथ है मेरेतब तक की जिंदगी चाहिये मुझेकल जितना भरोसा था तुझे मुझपेआज भी रख उतना भरोसा मुझपेतेरी हर तकलीफ के पल मेंमैं रहूँगा साथ तेरेमैं साथ हूँ तेरे........-अश्विनी कुमार मिश्रा
हम साथ है, तेरे।तू मरनी, मैं मोर हूँ तेरा।तू साज, मैं संगीत हूँ तेरा।तू आवाज, मैं कान हूँ तेरा।तू नागिन, मैं चन्दन हूँ तेरा।तू आँग, मैं जल हूँ तेरा।तू शेरनी, मैं मेमन हूँ तेरा।तू हवा, मैं बरगद हूँ तेरा।तू धरती, मैं आकाश हूँ तेरा।तू साथी, मैं हमराही हूँ तेरा।तू नदी, मैं किनारा हूँ तेरा।तू लाश, मैं कफ़
मन के सांचे जो ढल जाए, प्रेम सुधा वो पी जाएं.. वो हमराही, हमसफ़र सबको कहां मिलता है? मन से ही जो ठोकर खा जाएं, फिर भला वो कहां जाएं? जज्बातों का ज़लज़ला है, जिंदगी में सुख दुःख का फलसफा है... कुछ कह जाए, कुछ रह जाएं.. पूर्ण करने को सबकों मनमीत कहां मिलता है? जीने के लिए साथी है पर साथ कहां मिलता है
शी जिंगपिंग ( चीन के राष्ट्रपति ) विश्व एक बाजार नहीं है डॉ शोभा भारद्वाज जरूरत है आने वाली जेनरेशन में चीनी सामान के विरोध की भावना जगनी चाहिए |.“चीन ने भारत का इतिहास नहीं पढ़ा हमने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी अपने चरखे और हथकरघे का मोटा कपड़ा गर्व से पहन
भारती का प्यार है ये हिंदवी,भारतेन्दु ,शुक्ल और द्विवेदी प्रसाद ,जैसे , गोमुखी से गंगा काप्रयास है ये हिंदवी,हिम कन्दराओं दे उदित वेद मंत्रों युक्त,ऋषि मुनियों का इतिहास है ये हिंदवी,सूर का आभास है ये मीरा हरी प्यास है ये,पीड़ा महादेवी
किल में टंगी गर्दन को भी आजाद होना था। रिस्क लेने, झेलने का दर्द भी बहुत हुआ, अब इसे भी खत्म करना जरूरी था। काम की दुनिया से बंधे थे, जो रिश्ते.. वो भी काम की ही दुनिया में सिमट जाएंगे। बिना हक और जरूरत के रिश्ते कब तक साथ चलेंगे? एक न एक दिन बीतते वक्त की धूल में गुम हो जाएंगे। सब भ्रम के पर्दे एक
आंखों से पर्दा और तकदीर के लेख अपने समय पर ही खुलकर सामने आते हैं। बातों के फेर और मन भ्रम के फेर एक न एक दिन टूटते जरूर हैं लेकिन जब भी टूटते हैं, सोचने के लिए सवाल और सीख देकर जाते हैं। मन का भ्रम हो या हो मन प्रेम। मन के रिश्ते हैं। मन को ही समझ आते हैं। दिमाग तो है उलझनों का पिटारा, देखते हैं, क
बंधे बंधे से साथ चलें ...मैं अक्षर बन चिर युवा रहूं, मन्त्रों का द्वार बना लो तुम,हम बंधे बंधे से साथ चलें, मुझे भागीदार बना लो तुम.जीवन की सारी उपलब्धि, कैसे रखोगे एकाकी? तुमको संभाल कर मैं रखूँ, मेरे मन में जगह बना लो तुम.कोई मुक्त नहीं है दुनिया में, ईश्वर, भोगी या संन्यासी,प्रिय! कैसे मुक्
खुद को चुस्त व तंदरूस्त बनाए रखने के लिए एक्सरसाइज करना बेहद आवश्यक है। व्यायाम सिर्फ वजन कम करने का ही काम नहीं करता, बल्कि इससे शरीर को अन्य कई तरह के लाभ होते हैं। जैसे बाॅडी की स्टेंथ व स्टेमिना बढ़ता है और शरीर के सभी अंग सुचारू रूप से काम करते हैं। आमतौर पर देखने में आता है कि लोग शुरूआत में तो
मापनी--212 212 212 212, समान्त— बसाएँ (आएँ स्वर) पदांत --- चलो "गीतिका" साथ मन का मिला दिल रिझाएँ चलोवक्त का वक्त है पल निभाएँ चलोक्या पता आप को आदमी कब मिलेलो मिला आन दिन खिलखिलाएँ चलो।।जा रहे आज चौकठ औ घर छोड़ क्योंखोल खिड़की परत गुनगुनाएँ चलो।।शख्स वो मुड़ रहा देखता द्वार कोगाँव छूटा कहाँ पुर बसाएँ
मैं और मेरा शहर सौन्दर्यीकरण का अद्भुत नमूना शोरगुल भरें, चकाचौंध करते जातपात, धर्म वाद से परे पर अर्थ वाद की व्यापकता बचपन की यादों से जुडा मेरी पहचान का वो हिस्सा जानकर भी अनजान बने रहते आमने सामने पड जाते तो कलेजा उडेल देते प्रदूषण, शोर, भीड़ भरा शहर ना पक्षियों की चहचहाहट भोर होने का एहसास करात
मेरी ख़ामोशी की आवाज़,मुस्कराहट का अंदाज़, बंद पलकों का ख्वाब, और हर ख़ुशी का राज़, हो तुम एक सपने सा है साथ तुम्हारा, एक हकीकत है प्यार तुम्हारा, होठो पे हँसी, आँखों में नमी है तुमसे हर बात की दास्तान है तुमसे, और कहुँ कैसे कितना प्यार है तुमसे
साथ तुम दो जो अगर जिंदगी बदल जाये ,मुश्किलों के सभी हल आज ही निकल जाये, आये दिन लड़खड़ाते रहते हैं ये मेरे कदम,हाथ तुम थाम लो सारे कदम संभल जाये, इक तुम्हारी कमी से रब से गिले-शिक़वे हैं,तुम जो मिल जाओ शिकायत की शाम ढल जाये, यूँ मेरी राह को काँटों ने सजाया है मगर,साथ तुम जो चलो कलियाँ हजार खिल जाये, जि
मुझसे कहता है वो,क्या कहा, फिर से कहो,हम नहीं सुनते तेरी...चुप न रहो, कहते रहो,सुकूं है, अच्छा लगता है,पर जिद न करो सुनाने की...तुम्हारे साथ भी तन्हा हूं,तुम तो न समझोगे मगर,साथ रहो, चुप न रहो, कहते रहो...कठिन तो है यह राहगुजर,शजर का कोई साया भी नहीं,थोड़ी दूर मगर साथ चलो...भीड़ बहुत है, लोग कातिल हैं