ईरान के नये
राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी कट्टरपंथियों की पसंद है
डॉ शोभा भारद्वाज
ईरानी
क्रान्ति राजशाही के खिलाफ जन क्रान्ति थी जिसमें स्टूडेंट्स ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा
लिया था लेकिन धर्म के नाम पर सत्ता पर मौलानाओ ने पूरी तरह कब्जा कर इस्लामिक
गणराज्य की स्थापना की .ईरान के बाशिंदे कहते थे मुल्लाओं ने हमारा आंदोलन चुरा
लिया .ईरान अपने में एक पहेली है इस मुल्क को वही समझ सकते हैं जो लम्बे समय तक
वहाँ रहें हैं जनता से जिनका सम्पर्क रहा है ईरान में बकायदा चुनाव होते हैं
परिवार का मुखिया परिवार के वोटरों का आई कार्ड ले जाकर सबका वोट दे आता है. उम्मीदवार भी मौलानाओं
के गुट का होता है उन्हें मौड्रेट या उदारवादी कह लीजिये या
कट्टर पंथी उनका उद्देश्य मिडिल ईस्ट में शिया प्रभावित क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ाना कहीं
भी विद्रोह होने पर विद्रोहियों की मदद करना , शियाओं का परचम लहराना है .
ईरान की राजनीतिक
व्यवस्था में देश से जुड़े सभी मसलों पर आख़िरी फ़ैसला सुप्रीम लीडर (इमाम) आयतुल्ला
अली ख़ामनेई का होता है.
इमाम का महत्व, स्वर्गवासी इमाम आयतुल्ला
रूहुल्लाह खुमैनी जब लेक्चर देते थे उनके सामने नारे लगते थे ,
इमाम –ए –मा , इमाम ए मा रूह ए खुदाई
,फरमान बिदे – फरमान बिदे, इमाम खुदा की
रूह हैं आप हमें आज्ञा दीजिये .
इस्लाम में 1.अल्लाह 2.कुरान 3.पैगम्बर साहब को
मानते है शियाईज्म में 4.इमाम का भी महत्व है .
जन्नतनशीन इमाम आयतुल्ला खुमैनी के बाद
1989 में यहाँ सुप्रीम लीडर के पद पर 50 वर्ष के आयतुल्ला अली खामनेई की
नियुक्ति की गयी वह दो बार राष्ट्रपति के पद पर भी आसीन रहे, इमाम आयतुल्ला खुमैनी
के वह ख़ास थे .
सर्वोच्च नेता ईरान की सशस्त्र सेनाओं का प्रधान सेनापति है, उनके पास
सुरक्षा बलों का नियंत्रण होता है. वह न्यायपालिका के प्रमुखों, प्रभावशाली गार्डियन काउंसिल के आधे सदस्यों, शुक्रवार
की नमाज़ के नेताओं, सरकारी
टेलीविज़न और रेडियो नेटवर्क के प्रमुखों की नियुक्ति करते हैं. सर्वोच्च नेता की
अरबों डॉलर वाली दानार्थ संस्थाएं ईरानी अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को
नियंत्रित करती हैं. इनके बाद दूसरा पद राष्ट्रपति का है
ईरान में 18 जून को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए
. इन चुनावों में सात उम्मीदवारों को भाग लेने की इजाज़त दी गई है.जिनमें पाँच
कट्टर पंथी दो उदारवादी थे अंत में दो उम्मीदवारों में कड़ा मुकाबला हुआ .हालांकि
चुनावों में भाग लेने के लिए बहुत लोगों
ने कोशिश की जिनमें महिलाएं भी थी लेकिन निर्वाचन प्रक्रिया की संस्था गार्डियन
काउंसिल ने ज़्यादातर को अयोग्य करार दे दिया. काउंसिल के निर्णय से हतोत्साहित मतदाताओं
में वोटिंग को लेकर उत्साह नहीं था अत : मतदान कम हुआ जबकि चुनाव के नियम बनाये गये थे 50%तक वोटिंग होनी चाहिए .
इब्राहिम रईसी के चुनाव अभियान का
मुख्य एजेंडा 'निराशा और ना उम्मीदगी' के माहौल से ईरान की जनता का उबरना है . खुद को उन्होंने पद के लिए
सबसे बेहतर बताते हुए दावा किया किया वो
देश से भ्रष्टाचार मिटा देंगे और ईरान की
आथिक स्थिति को मजबूत बनाएंगे. इन्हें कट्टरपंथियों का विशेष समर्थन हासिल है.
स्वयं को वह कट्टर शिया, धर्म
का रखवाला कहते हैं रईसी कम उम्र में ही अच्छे पद पाने लगे एवं ट्रिब्यूनल का
हिस्सा बन गए, जिसे ‘डेथ
कमेटी’ के नाम से भी जाना जाता है. साल 1979 की क्रांति के बाद इब्राहिम रईसी ज्यूडीशियल सर्विस में आए
थे करियर में ज्यादातर समय सरकारी वकील रहे साल 1988 में राजनीतिक कैदियों और निजाम
विरोधियों को सामूहिक रूप से मृत्युदंड का फैसला सुनाने वाले विशेष आयोग का वे हिस्सा
थे. वे
तेहरान के वेस्ट में करज बहुत खूबसूरत जगह है की कोर्ट के प्रोसिक्यूटर हुआ करते
थे. जल्द ही उनका प्रमोशन तेहरान हो गया. वहां वो उस सीक्रेट ट्रिब्यूनल का हिस्सा
बन गए, जिसे डेथ
कमेटी के नाम से भी जाना जाता है यह उसके अहम सदस्य थे . इस ट्रिब्यूनल ने राजनैतिक
कैदियों पर मुकदमें चलाये गये ये कैदी
पीपल्स मुजाहिदीन ऑर्गनाइजेशन ऑफ ईरान के सदस्य या सपोर्टर थे ईरान में वामपंथ ( इन्हें कोमिल्ला
कहते थे )की वकालत करते थे. इनको धड़ाधड़ पकड़ कर मौत की सजा दे दी गई.
इब्राहीम रईसी ईरान की सबसे
समृद्ध सामाजिक संस्था और मशहाद धार्मिक शहर है यहाँ आठवें शिया इमाम रेज़ा की
पवित्र दरगाह है इस अस्तान-ए-क़ोद्स के संरक्षक भी रह चुके हैं ईरान में सुप्रीम
लीडर की नियुक्ति करने और उसे पद से हटाने की हैसियत रखने वाले ताक़तवर संस्था 'विशेषज्ञों की परिषद' के वे सदस्य भी हैं. चुनाव के
समय वह न्यायाधीश के पद पर आसीन थे .
शाह का रिजीम समाप्त होने के
बाद मौलानाओं की सत्ता पर पकड़ मजबूत करने के लिए राजनीतिक बंदियों को गिरफ्तार कर
उनको मृत्यू दंड सुनाया जाता था रात को जेलों से गोली चलने की आवाजें आती एक जान
एक गोली कईयों को फांसी दी जाती थी
राजनीतिक बंदियों रिजीम के विरोधियों को यातनाएं दे कर मरवाया जाता था .उन दिनों
ईरान में आतंक का ऐसा माहौल था लोगों की जुबानें बंद थी एयरपोर्ट से ईरान के हालात
का पता चल जाता था सड़कों पर रिवोल्यूशनरी गार्ड हाथ में गन के साथ लैस नजर आते थे
वह किसी की भी तलाशी ले सकते थे .कई तो कम उम्र के थे इन्हीं के बल पर सत्ता को
मजबूत किया गया .ईरान के बड़े शहरों के बाहर अलग कब्रिस्तानों में निजाम विरोधियों
की कब्रों हैं यहाँ सन्नाटा छाया रहता है किसी में हिम्मत नहीं है वह इन
कब्रिस्तानों में जा कर स्वजनों की कब्रों पर फूल चढ़ा कर उन्हें याद करने की
हिम्मत कर सकें .
जबकि ईरानी संस्कृति के अनुसार
बृहस्पतिवार के दिन परिवार कब्रिस्तानों में अपने मृतकों की कब्रों पर उन्हें याद
करने जाते हैं कब्रिस्तानों के बाहर मिनी बसों गाड़ियों की कतारें देखी जा सकती है
.मौलानाओं की सत्ता पर मजबूत पकड़ होने के बाद ही ईरानियों के दिन सुधरे . लोग
विदेशियों से अपने दिल की व्यथा कहते थे आप लोग अपने देश में बताना हमारी क्या हालत
है बातों में दर्द ही दर्द एवं निराशा थी वह कहते थे अब्बल सद साल मुश्किल हैं
शुरूआती 100 साल मुश्किल हैं फिर आदत पड़ जाती है .ईरान ईराक के बीच जंग चल रही थी
लोगों को इसके बहाने भी दबाया जाता था .समय बदला एक दिन टीवी में देखा
ईरानी टीवी एंकर लोगों से उनकी परेशानियां पूछ रही थी हैरानी हुई थी .
60 साल के रायसी अगस्त में मौजूदा राष्ट्रपति हसन
रुहानी की जगह लेंगे. ईरान में यह सत्ता परिवर्तन ऐसे वक्त हो रहा है, जब अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों के साथ हुए
परमाणु बहाली समझौते की बहाली को लेकर बातचीत चल रही है. ईरान एटमी डील से दोबारा
जुड़ना चाहता है किसी भी कीमत पर परमाणु शक्ति बनने का इच्छुक है
लेकिन डील अपनी शर्तों पर
रईसी पहले ईरानी राष्ट्रपति होंगे जिन पर पदभार संभालने से पहले ही अमेरिका
प्रतिबंध लगा चुका है। उनपर यह प्रतिबंध 1988 में
राजनीतिक कैदियों की सामूहिक हत्या के आरोप तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना
झेलने वाली ईरानी न्यायपालिका के मुखिया के तौर पर लगाया गया था .
रईसी के राष्ट्रपति
बनने से अमेरिकन एवं इजरायल के नीतिज्ञ सोच में हैं इजरायल और ईरान में हमेशा से ही तनाव चला आ रहा
था, जिसमें बीते दो सालों में और तेजी आई है.