शी जिंगपिंग ( चीन के राष्ट्रपति ) विश्व एक बाजार नहीं है
डॉ शोभा भारद्वाज
जरूरत है आने वाली जेनरेशन में चीनी सामान के विरोध की भावना जगनी चाहिए |.“चीन ने भारत का इतिहास नहीं पढ़ा हमने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी अपने चरखे और हथकरघे का मोटा कपड़ा गर्व से पहना था “चीन के नीतिकारों के दिमाग में क्या चल रहा है इसे समझना मुश्किल है | लेकिन इसमें संदेह नही चीन को बाजार चाहिए हमारा बाजार बहुत बड़ा है लेकिन यदि देश में स्वदेशी बस्तुओं के प्रयोग की भावना जग गयी चीन को हम सिर उठाने नहीं देंगे |”हमारे यहां कमा कर हमारी ही सीमाओं पर नजर रखना| अब तो पाकिस्तानी आतंकी चीनी असलहा लेकर हमारे यहाँ कश्मीर में आतंक फैलाने आ रहे हैं | चीन के अखबार ग्लोब टाइम्स को हमारे यहां राष्ट्रीयता की भावना पर भी ऐतराज है |
एक समय था चीन की हालत खराब थी ,जब कम्यूनिस्ट पार्टी अर्थात माओ ने सत्ता सम्भाली देश बेहद गरीब था माओ ने कृषि आधारित आर्थिक व्यवस्था के स्थान पर देश के औद्योगीकरण करने की कोशिश की लेकिन यह प्रयोग पूरी तरह असफल रहा देश की हालत बदतर होती गयी | 1959-1961 के बीच अकाल ने चीन के लाखो लोगों की जानें ले ली.वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार तब चीन में भारत से 26 फीसदी ज्यादा गरीब थे गरीबी में चीन के किसान जीने के लिए वृक्षों की चाल उबाल कर खाने लगे मुर्गे के पंजे उबाल कर उसका सूप बना लेते थे धीरे - धीरे हर जानवर हर अंग खाने लगे |
अंत में जो भी जानवर मिल जाता उसी को ले आते घर में ‘हाट पाट’ में पानी और मिर्च डाल कर उबलता रहता घर का व्यक्ति जिस जानवर को मार कर ले लाता था उसी को उबलते पानी में डाल देते उस दिन यही उनका भोजन था |
चीन में मध्यम वर्ग इतना सम्पन्न हो चुका है चीनी नव वर्ष पर घूमने जाता है इन दिनों योरोप में टूरिज्म बढ़ जाता है कोअब्की बार चीनी इटली ख़ास कर कोरोना की सौगात दे गये कितना इन्सान वहाँ मरा है लाशों के अन्तिम संस्कार में अपने नहीं थे आज तक हालात नहीं सुधर रहे | सिंगापुर की आबादी में चीनियों की भरमार है यहाँ चीनी नववर्ष पर दिलचस्प प्रोग्राम होते हैं जिनमें हिंदी गानों पर लाईट एंड साउंड प्रोग्राम देखने के लिए चीनी ही नहीं भारतीय टूरिस्ट भी आते हैं |