किसी के लिए
कुछ करना आसान नहीं
तुम्हें बढ़ना ही होगा आगे
हर हाल में !!!
दुर्घटना,मृत्यु,
गरीबी-अमीरी …
रोते हुए
उपहास करते हुए
आलोचना करते हुए
घृणा से देखते हुए
अंततः तुम्हें बढ़ ही जाना होगा
क्योंकि तुम्हारे साथ जो घटना-दुर्घटना है
उसे भी तो तुम्हें ही जीना है
उनकी व्यवस्था भी तो करनी है …
तुम कर्म से अमर हो सकते हो
सशरीर नहीं
और कर्म किसी एक दिशा में नहीं
अनचाहे रास्तों पर भी हैं
ग्लानि,पश्चाताप,दुःख,हर्ष
बिना इसके
तुम जीवन नहीं गुजार सकते
संतोष मिलता नहीं
संतुष्टि की स्थिति बनानी होती है
कई लावारिस पड़े लाशों को
बिना कफ़न दिए आगे बढ़ जाना होता है … !
रात के सन्नाटे में
अपने एकांत में
ये तुम्हें कोसेंगे
लेकिन …
तुमको बढ़ना है
अब इसे पाप मानो
या नियति !!!