नहीं हो सकते मुक्त
जब तक हो खामोश
जीतने की प्रखरता हो
और हो हार स्वीकार
.... नहीं हो सकते मुक्त
सत्य असत्य का फर्क मालूम है
पर हों जुबां पर ताले
नहीं हो सकते मुक्त
भय की आगोश में भी
किसी उम्मीद की मुस्कान हो
नहीं हो सकते मुक्त
.......
मुक्त होना चाहते हो
ऐसे में -
यदि जीत नहीं सकते
तो खेल ो ही मत
धरती पर हिकारत से फेंके गए
अधिकार और कर्तव्य के टुकड़े उठाने से बेहतर है
चोरी करो ....
यूँ भी तुम चोर कहे जाते हो
तुम्हारी हर बात झूठ है
तो झूठ बोलो ....
देखना लोग विश्वास करने लगेंगे
और तुम अपनी जकड़न से मुक्त
खिलखिलाकर हँस सकोगे ..... इस मुक्ति को आजमा कर देखो