चेहरे पर
वाणी में मासूमियत लिए
तुम जो अपरोक्ष चाल चलते हो
वह मुझे दिखाई देता है !
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निःसंदेह,
तुम्हारी चाह है कि इसे कारण बनाया जाए
फिर तुम मासूम हतप्रभता दिखाओ
पर ऐसा होगा नहीं
क्योंकि राह चलते
जाने-अनजाने
मैं कई मेमनों से मिल चुकी हूँ
जो सोये शेर पर उछलकूद करते हैं
...
कभी शेर दहाड़ दे
तो अबोध खेल की दुहाई देते हैं !!!
मासूमियत के इस चक्रव्यूह को
अब मैं बेधती भी नहीं
पूरी तत्परता से जागती हूँ
ताकि अभिमन्यु सुन सके पूरी बात
ऐसे चक्रव्यूह में जाए ही नहीं
जहाँ मूर्खता से भरे प्यादे हों !
तर्क हो या स्पष्टीकरण
प्रश्न हो या उत्तर
बराबर की मानसिकता वालों के मध्य ही उचित है
पूरी ज़िन्दगी दूध भात का खेल नहीं होता
बनाना भी नहीं चाहिए ...