
हम
सपनों के बहते खून से
लिखना चाहते हैं
सपनों की रूहानी बातें
एक क्षण के लिए
ज़ोर से चीखना चाहते हैं
पींगे लेते हुए
झूले को ज़िंदा करना चाहते हैं
हम ... खुद को सुरक्षित करना चाहते हैं
हमें मारते हुए
हमारे आगे से
हमारा निवाला छीनते हुए
हमें चूल्हे में झोंकते हुए
तुम्हें खौफ़ नहीं होता
हमारी हर मौत का ज़िम्मेदार
हमें ठहराते हुए
तुम्हारी करुणा नहीं जागती
तो हम !
हम क्यूँ
और कब तक बनें
एक घर की बुनियाद
उसकी सजावट
उसकी चहक
उसकी साफ़ सुथरी खिड़कियाँ !!!
कानून तो बना दिए तुमने
आँखों पर पट्टी भी बाँध ली
हमेशा की तरह ...
दोगुनी फ़ीस लेकर
हमारी माँ की तकलीफों से उदासीन
जो हमें गर्भ में ही मार देते हैं
कचरे में फेंक देते हैं
उन्हें हत्या जैसी कौन सी सजा देते हो ?
और कितने वर्षों में ??
शिक्षा भी हमें मिल रही है
परिवर्तन है
पर इस परिवर्तन में
सड़कों पर कितनी दुर्गन्ध फैली है
गले तक कीचड़ में डूबी है हर सुबह
हमें चाहिए एक शफ़्फ़ाक़ ज़िन्दगी
अनुरोध है तुमसे
हमें गर्भ में पनपने दो
हमारे सपनों को उगने दो
हमारी पाजेब को छनकने दो
हमें निर्बाध,
पूर्ण,
समुचित रूप से
शिक्षित होने दो
चाहते हो हमारी बुनियाद
तो हर पुरुष को एक स्तंभ बनाओ
परिवर्तन यूँ लाओ ...