मन अभिमन्यु
मैंने तुम्हें हर बार रोका
पृष्ठ खोल महाभारत का दृश्य दिखाया
पर तुमने चक्रव्यूह से पलायन नहीं किया ...
तुमने हर बार कहा
बन्द दरवाज़े की घुटन न हो
तो कोई रास्ते नहीं खुलते
ना ही बनते हैं !
अभिमन्यु सी ज़िद
अभिमन्यु सा हौसला
और अंततः तुमने सिद्ध कर दिया
अभिमन्यु किसी चक्रव्यूह में नहीं मरता
वह दिखाता है - गलित सत्य
और काट जाता है - मोहबंध !...
जब भी कुछ पहली बार होता है
तो उसका दर्द असहनीय होता है
पर पुनरावृति कहती है -
" हिम्मत करनेवालों की कभी हार नहीं होती "
परिभाषाएं बदलती जाती हैं
संस्कार के पौधों में भी पानी अधिक पड़ जाए
तो कीड़े लग जाते हैं
मन अभिमन्यु
तुमने हर बार एक नई सोच दी ...
आज सोचती हूँ
तुमने न मानकर
मुझे हार में भी जीत का एहसास दिया
और बताया कि
चक्रव्यूह को तोड़ना आए न आए
असलियत की तस्वीर
सारे चक्रव्यूह तोड़ देती है
और ..... इसके लिए
अभिमन्यु की मौत ज़रूरी है