आत्महत्या
यानि खुद की हत्या
जिसे अंजाम देते हुए
कोई भी हिंसक नहीं होता !
बड़ी सन्नाटे सी होती है यह हत्या
हुम् हुम् सी आवाज़
पंखे को देखती है
देखती है अपनी नसों को
या माचिस की तीली को …
दिमाग -
शायद
संभवतः
नहीं सोच पाता
कि हत्या के बाद क्या होगा !
यह स्थिति ना ही निर्वाण है
ना ही आवेश
निरीह भी बिल्कुल नहीं !
फिर क्या है ?
संभवतः रास्ते खो जाने का एहसास है
मस्तिष्क की मौत है …
अन्यथा,
एक चिंगारी
एक खरोंच
बंद कमरे की घुटन
बर्दाश्त से बाहर होती है !
सोचनेवाली बात है
डर और हार कितनी भयावह होती होगी
कि मर जाने के हथियार
खुद ही इकट्ठे कर लेता है इंसान !!
दर्द हो या डर
कोई एक दिन की तो बात होगी नहीं
फिर कोई कैसे नहीं समझता ?!
सर पर हाथ रखना इतना कठिन है
अपने होने का एहसास देना इतना कठिन है
कि,
बगल के कमरे में कोई अपनी हत्या करता है
और आपको एक हल्की आहट नहीं मिलती
…
ये खून के रिश्ते कैसे हैं ?
कैसे हैं ये सप्तपदी के महत्वपूर्ण मंत्र ?
इस ऐंठन भरे प्रश्न का जवाब कहाँ है ?
परिवार में
या सामाजिक व्यवस्था में ?