
किसी बात के बीच में ही
जब मैं कहती हूँ
'चुप हो जाओ'
इसका अर्थ ये नहीं
कि तुम गलत हो …
इसका अर्थ ये है
कि तुम गलत समझे जा रहे हो
और कोई ऊँगली उठाए
उससे पहले - चुप हो जाओ !
प्रश्नों के जाल में उलझकर
स्पष्टीकरण में
तुम सही नहीं रह पाओगे !
लीक से हटकर हर प्रश्न
तुम्हें गुमराह करने के लिए ही होते हैं
अपनी गलतियों को तुम पर मढ़ना
उद्देश्य होता है
फिर कोई भी जवाब खरा होगा ही नहीं !
असली प्यार
सही-गलत की पहचान रखता है
यदि वह गलत को सही कहे
तो निःसंदेह तुम्हें सतर्क होना है
समझ लेना है कि वह प्यार नहीं है
औपचारिकता है
बेवजह अपनी बुद्धि के तरकश को
सामयिक
उचित वाणों से
खाली मत करो
कृष्ण बनो
पहले विनम्र प्रस्ताव रखो
फिर शंखनाद …
निरर्थक अभिमन्यु बनकर क्या होगा ?
ऐसे में
समय बनकर जब मैं कहूँ - चुप रहो
तो बिना किसी अगर मगर के
चुप हो जाओ
एक चुप्पी में
बहुत बड़ी ताकत होती है
समझे ?