घबराहट और साहस
दृढ़ता और शून्यता
डबडबाई आँखें और खोने की हँसी …
अजीब तालमेल है
पर अक्सर किसी ढलान पर मिल जाते हैं !
वह मुझे ऐसे ही ढलान पर मिली थी
अपने वजूद को तलाशती !
आतंरिक जड़ें ईश्वरीय होती हैं
उसकी भी हैं
आँधी तूफ़ान को बेख़ौफ़ झेलना
उसकी अनोखी शक्ति है
मर्यादापुरुषोत्तम राम की भाँति
समंदर से विनम्र आग्रह
उसने तीन दिन नहीं
वर्षों किया
लक्ष्य साधने से पूर्व
अपनी साधारण छवि में
उसने तथाकथित रक्तसम्बन्धों को पुकारा …
तथाकथित हो जाते हैं वे रिश्ते
जो धृतराष्ट्र से होते हैं
खैर,
उसने पुकारा
और खाली कुँए से आती आवाज़ की मानिंद
खिलखिलाकर कहती रही
"पहचान मिल रही है"
....
आज उसी ढलान पर
सधे पाँव वह चलकर आई है
"सब मुझे दूर ले जा रहे
मैंने माँ से कहा
भाई को बुलाया
लेकिन .... जा रही हूँ
सच सिर्फ आपसे कहना है
कि मैं किसी अनजान स्टेशन पर उतर जाऊँगी
इतने पैसे इकट्ठे कर लिए हैं
कि एक कमरा लेकर
सिलाई करके
अपनी ज़िन्दगी बदलने की कोशिश कर सकूँ !!
बस गले लगकर आशीष लेने आई थी"
…
मैंने सर पे हाथ रखा
बुदबुदाई - इतना बड़ा निर्णय कोई यूँ ही नहीं लेता
एक खौफनाक सन्नाटे की तरह
पूरा शरीर सिहर उठा
तेज सीटी देती रेलगाड़ी
धड़धड़ाती हुई दिल-दिमाग से गुजर गई
इतना ही कह पाई - याद रखना,
मैं हूँ !
....
अब वह नहीं दिखेगी इस ढलान पर
लेकिन मेरी डबडबाई आँखों में विश्वास है
- वह कुछ कर दिखाएगी
आतंरिक जड़ों से फूटती कोंपलें
मुझे दिख रही है ...................