वह सन्नाटा
जो तुम्हारे दिल में नदी की तरह बहता है
उसके पानी से
मैं हर दिन
अपने एहसासों का घड़ा भरती हूँ
उस पानी की छुवन से
मिट्टी से एहसास नम होते हैं
और तेरे चेहरे की सोंधी खुशबू
उस घड़े से आती है ...
दूर दूर तक खाली तैरती
तुम्हारी पुतलियों को
अक्सर मैंने छुआ है यह सोचकर
कि कुछ ना सही
मेरे स्पर्श की लोरी तो तुम्हें मिल जाये !
वो जिन यादों की पोटली खोल
तुम मुस्कुराते हो
उस मुस्कान को
और देर तक रखने की ख्वाहिश में
मैं धीरे से कुछ यादें
उस पोटली में छुपा आती हूँ ...
जब जब तुम्हें लगता है
तुम बदल गए हो
मैं बचपन की मोहक गलियों से
वह सारे सपने ले आती हूँ
जिनको मैंने जागकर बुने थे - तुम्हारे लिए !
पहाड़ों के आगे 'माँ' कहकर जब भी पुकारोगे
प्रतिध्वनि बन माँ की अनुगूँज
तुम्हारे रोम रोम में प्रवाहित होगी
और पहाड़ों से देव स्वर सजीव हो उठेंगे ..
सोचो यह कितनी बड़ी बात है
अकेले में इस जादू को
बस तुम देख सकते हो ...!!!